दुनियाँ भी एक रंगमंच है सब किरदार निभाने आये है इस धरती पर , कोई नायक बनके पुण्य कमाने आये है, और कोई खलनायक बनके पाप करने आये है | विद्या मेहता
आज सृष्टि के रचना का प्रारंभ दिवस है इस शुभ अवसर पर हमें पुनः अवसर मिला है राष्ट्र के प्रति अपना कर्त्तव्य निभाने का घर पर रहे शुरक्षित रहें गुड़ी पड़वा के हार्दिक शुभकामनाएँ
क्या भूल गए वो यादें, वो नादान बचपन की यादें वो दूरदर्शन के यादगार धारवाही रामायण और शक्तिमान वो आठआने, चवन्नी में आने वाली संतरे की गोली वो गीटू, कंचे,पिट्ठुओं का खेल ,वो चोट पर मां की हल्की फूंक क्या भूल गए वो यादें,
कविता केवल शब्दों का ढेर मात्र नहीं, सभी मानवीय कल्पनाओं का, भावनाओं का, मिलन है कविता सृष्टि के सौंदर्य की सच्चाई है कविता विद्या मेहता