बहुत कुछ खो चुका हूं इस ज़मीं पे,
इसलिए गुफ्तगू अब तारों से है मेरी।
मुंतशिर से मुकम्मल होना बाकी है,
कुछ है जो लिखा जाना बाकी है।
क्या हाल है मेरे देश में सियासत के फेर का,
क्या बैठे हो तुम इंतेज़ार में लाशों के ढेर का।
ये जो आंखों में काले घेरे हैं,
ये तेरी यादों के अंधेरे हैं।
मौसमी देशभक्ति का उबाल सा लगता है,
कुछ समझ नासमझ के बवाल सा लगता है,
कुछ सेक रहे हैं अपनी रोटियां यहां,
कुछ का तो बेमतलब सवाल सा लगता है।
खुद के रोने और जमाने को रुलाने के बीच का सफर ही जिंदगी हैं।
मेरा खून ही अब इस कलम की स्याही है,
मेरी शायरियां तेरे ना होने की गवाही है।
हिरनी जैसी आंखें है उसकी,
दिल करता है जंगल हो जाऊं।
ये जो चेहरे पे तेरे दाने है,
ये मेरे आसमां के सितारे है।