Abhay Nath Thakur
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इस हसीं में कितना गम है कैसे बताऊं इस जमाने को हर कोई मतलब से आते यहां मन की बातें आजमाने को।।

हृदय से निकली फिर, पहुंच आंख तलक गई। जब जब दर्द बढ़ा यहां, तो आंशुए छलक गई।।

निकल पड़ा हूं अनजान सड़कों पर , डर है कहीं खो ना जाऊं। जागती आंखो ने कुछ सपने देखे हैं डर है कहीं सो ना जाऊं।।

भागदौड़ की जिंदगी में कहीं अपने छूट ना जाए! बचपन से जो साथ दिया वो परिवार टूट ना जाए!!

कौन कहता है कि हम कुछ खोते नहीं, ग़म तो हमें भी होता है कुछ खोने की। फर्क बस इतना है कि हम रोते नहीं।।

बहुत दिनों से मन में कुछ बात थी मेरे! कि तेरा हो जाऊं बिन शादी के फेरे!!

चलो करें कुछ अच्छे काम, करें रौशन अपनों के नाम,

मीलों दूर चल कर भी थकते नहीं है हम, रुकावटें आतीं हैं पर रुकते नहीं हैं हम ।


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