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Mistry Surendra Kumar
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मौन की भाषा, अल्फ़ाज़ की मोहताज नहीं होती...........

परिश्रम का पेड़ लगाकर ही परिणाम के मीठे फल प्राप्त होंगे । आलस्य रूपी अकर्मण्यता तो विनाश का कारण ही बनेगी ।।

मुश्किल है तो हल निकलेगा । आज नहीं तो कल निकलेगा । इस कदर उम्मीद मत हार ऐ मुसाफिर । हौंसलों से मुकद्दर बदलेगा ।

नफरत की दीवार गिराकर तो देखिए । प्यार के चिराग जलाकर तो देखिए । अरे ! कौन कहता है कि सन्नाटे में आवाज नहीं होती। मन के बुझे हुए दीपक जलाकर तो देखिए ।।

नफरत की दीवार गिराकर तो देखिए । प्यार के चिराग जला कर तो देखिए । अरे कौन कहता है कि पत्थर में जान नहीं होती । उसे एक बार शिल्पकार की नज़र से तो देखिए ।।

विचारों के युद्ध में, ज्ञान से बड़ा कोई शस्त्र नहीं ।

समय की रेत पर निशान वही बनाते हैं , जो बुलंदियों के आसमान में छलांग लगाते हैं , वरना कायरों की तरह जीवन जीने वाले तो एक दिन इसी तरह रेंग रेंग कर इस दुनिया से चले जाते हैं ।।

जिंदगी की रेस जज़्बे से जीती जाती है, जज़्बात से नहीं .......

डर की दहलीज़ पर खड़े होकर ज़िन्दगी की चुनौतियों के रास्ते तय नहीं होते .......


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