आत्मवत् सर्व भूतेषु यः पश्यति सः पण्डिता ( जो सभी को अपने समान समझता है वही ज्ञानी हैं ) एवम् आत्मन्ः प्रतिकूलानि परेषाम् न समाचरेत् ( जो स्वयं के लिए स्वीकार्य न हो वह दूसरों के साथ न करे ) ये दो मेरे आदर्श वाक्य हैं | मेरे बारे में सबसे सटीक पंक्तियाँ जो मुझे लगती हैं वो यह हैं - मै आईना हूँ... Read more
Share with friendsमनुष्य अतीत में जी सकता हैं, उन स्मृतियों में जो अब नही हैं या भविष्य में जी सकता हैं, जो एक प्रक्षेपण हैं | प्रभात