प्रभात मिश्र
Literary Colonel
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आत्मवत् सर्व भूतेषु यः पश्यति सः पण्डिता ( जो सभी को अपने समान समझता है वही ज्ञानी हैं ) एवम् आत्मन्ः प्रतिकूलानि परेषाम् न समाचरेत् ( जो स्वयं के लिए स्वीकार्य न हो वह दूसरों के साथ न करे ) ये दो मेरे आदर्श वाक्य हैं | मेरे बारे में सबसे सटीक पंक्तियाँ जो मुझे लगती हैं वो यह हैं - मै आईना हूँ... Read more

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नेता और परेता लड़ते लड़ते चमचे भक्त जाति धरम के चक्कर में भारत हुआ विभक्त जोगिरा सारा रा रा रा

नेता और परेता लड़ते लड़ते चमचे भक्त जाति धरम के चक्कर में भारत हुआ विभक्त जोगिरा सारा रा रा रा

चंदे के बल पर चुनाव में ठोंक रहे थे ताल खाते सारे जब्त हो गये नही मिल रहा माल जोगिरा सारा रा रा रा

राजनीति की गंगा बह रही कौवे हो रहे हंस अयोध्या के नाम पे लड़ते देखो रावण कंस जोगिरा सारा रा रा रा

दुनिया भर में पीट रहे थे ईमानदारी का ढोल ई डी की जब जाँच हो गयी खुल गयी सारी पोल जोगिरा सारा रा रा

दुनिया भर में पीट रहे थे ईमानदारी का ढोल ई डी की जब जाँच हो गयी खुल गयी सारी पोल जोगिरा सारा रा रा

मनुष्य अतीत में जी सकता हैं, उन स्मृतियों में जो अब नही हैं या भविष्य में जी सकता हैं, जो एक प्रक्षेपण हैं | प्रभात

मनुष्य आत्मवंचनाओं के बिना जीवित नही रह सकता | उसे चाहिये झूठ, स्वप्न और भ्रांतियाँ प्रभात

गंतव्य से ज्यादा दृष्टि मार्ग पर होनी चाहिए, यात्रा का एक अपना नैसर्गिक आनंद होता हैं


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