अपना कर्तव्य भुलाकर गर बस औरों में कमियां ढूंढ़ेगे
कल मिलेगा न यह निर्मल जल
न जीवनदाई वन होंगे
कितना भी स्वयं को विकासशील कह लो
लेकिन चारित्रिक विकास न हो तो सब व्यर्थ है
जो अपने लक्ष्य को
ध्यान में रख कर निरंतर
ईमानदारी से प्रयास करते हैं
सफलता उन्ही के कदम चूमती है
अमन, शांति का पाठ पढ़ाते
गीता,बाइबिल और कुरान
फिर क्यों लेकर आड़ धर्म की
लड़ता रहता है इन्सान
मंजिल को पाना है तो
व्यवहार में लचीलापन छोड़ कर,
अनुशासन का पालन करना पड़ेगा
अगर दिल में साहस है तो
कोई बाधा कोई परेशानी
कर्तव्य पथ से विचलित
नही कर सकती
खुद पर कर यकीन
बढें हों जब कदम
अब रोक ले उन्हें
नही किसी में दम
अपनी मेहनत और काबिलियत पर यकीन करने वाले ही नायक कह लाते हैं
स्वभाव की नम्रता व्यक्तित्व की महानता को दर्शाती है
क्योंकि जो मन से खोखला होता है
वही ज्यादा चीखता चिल्लाता है