साहित्यकार, समाजसेवि लिखने और पढ़ने का शौक
Share with friendsबंदिशे कभी आगे बढ़ने नहीं देती, गुमनामी के अंधेरे में खो जाते हैं। मंजिल पर कदम बढ़ा मेरे साथी, तेरे साथ काफ़िले चला करते हैं। ✍️ ऋतु गर्ग, सिलिगुड़ी
सहन शक्ती की प्रतिमा सभी को शीश झुकाना तुम, हो यदि अत्याचार तो तुरंत रण चंडी बन जाना तुम श्रद्धा की प्रति मूर्ति हो सम्मान सदा ही पाओगी तुम जगत जननी हो, सदैव पूजी जाओगी। 🙏🙏
दिल के गमों को आंसुओं में बहने ना देंगे जुबां पर कर्कश शब्द आने ना देंगे होठों पर हंसी और गालों की लाली कभी जाने ना देंगे, कभी जाने ना देंगे।