खुद में सुकून को ढूंढा
तो फिर सुकून मिला
गैरों का साथ कोई काम न आया।
मुद्दतों चलते-चलते
क्या राही थक जाते हैं
या मंजिल तक पहुंच जाते हैं।
बंदिशे कभी आगे बढ़ने नहीं देती,
गुमनामी के अंधेरे में खो जाते हैं।
मंजिल पर कदम बढ़ा मेरे साथी,
तेरे साथ काफ़िले चला करते हैं।
✍️ ऋतु गर्ग, सिलिगुड़ी
सहन शक्ती की प्रतिमा
सभी को शीश झुकाना तुम,
हो यदि अत्याचार तो
तुरंत रण चंडी बन जाना तुम
श्रद्धा की प्रति मूर्ति हो
सम्मान सदा ही पाओगी
तुम जगत जननी हो,
सदैव पूजी जाओगी।
🙏🙏
शब्दों का जादू है या ,
बात है भावों की।
बहता दरिया निर्मल है या,
बात है जज्बातों की।
ऋतु गर्ग
दिल के गमों को आंसुओं में बहने ना देंगे
जुबां पर कर्कश शब्द आने ना देंगे
होठों पर हंसी और गालों की लाली
कभी जाने ना देंगे, कभी जाने ना देंगे।
आज हवाओं के रुख ने
आकर हमे बहुत समझाया
संभल जाओ मानव
धरा को तुमने बहुत सताया।
कुछ पल हम भी साथ रहे
और मन की बातें किया करें।
कुछ पल साथ रहकर हम भी,
साथ साथ ही जीया करें।
सर्दी की ठंडी रात में उस मां ने,
कैसे हर पल बिताया होगा।
अपने ही कलेजे के टुकड़े को जब,
गर्म हुई राख पर सुलाया होगा।
पिता का साया भी न था उस पर,
मां ने उसे कैसे सुलाया होगा।