विचारो को शब्द देना चाहती हूँ
Share with friendsविचारों के अथाह सागर में...डुबकीयाँ लगा रहे थे हम, तभी ..... कानों में बुदबुदाई भावनाऐं .. कहाँ छोड़े जारहे थे हमें ! बिना मेरे स्पर्श के ज़ंजीरें बनते देखे... विचारों को भी !!
बुदबुदाते होंठों पर अकसर शिकायतें ख़ंजर होती हैं, पर...... शिकायतें ख़ंजर के निशाने दिल अपना ही होता है ! ध्यान रखे ! साधना
गुज़ार लो कुछ पल... अपने साथ ऐ ज़िन्दगी नही तो ढुढंते रह जाओगे खुद को ......,. दुसरो के मुस्कुराहटों मे... अपने को ऐ ज़िन्दगी ! साधना जैन
वक़्त की मार हौसलों को तोड देता है... ज़रूर, पर ........... शब्दों की मार तो रिश्तों को तोड देता है!