Manisha Sharma
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मुझे अपने जज्बातों को कलम के जरिये महसूस् करना है

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एक रोज दिल हार गया बाकी सब जीत गया जिसको जीतना था उसी से हार गया नींद चैन सब निसार दिया पनाह मिली पर प्यार ना मिला एक जान थी वो भी वार दिया सुकून शिकवा गिला सब मिला अनजाने में एक शख्स मिला ऐसा मिला के फिर कोई नही मिला manu

वो रहा नाराजगियों के गुमान मे हमसे तो उनके भेजे हुए मैसज भी डिलीट ना हुए

मैं अब इस तरह बड़ी हो गई कि अपनी सारी उदासी बिल्कुल उसी तरह छुपा लेती हूँ जैसे माँ नहीं कहती है रोटी नहीं है और पापा नहीं कहते हे अब पैसे नहीं है

तुम्हारा अहसास कुछ यू रहे गया मुझ पर मानो किसी सुने हुए संगीत का लब्जो पर ठहर जाना

मुझे जलन हैं उस शक्स से जिसका रंग तुम पर इस कदर चढा के मेरे आँख से निकलने वाले अश्रू भी उस रंग को धो नहीं पा रहे हैं


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