Alka Jain

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हर एक बात ज़रा संभलकर, जाने कौन सी बात जुमला हो जाए। जैनसाहिबा

मेरी बातों मे मतलब ना खोजना, शब्दों से मायनो की अनबन है आजकल। जैनसाहिबा

एक ख़्वाब रात भर भीगा किया, तेरे शहर में ज़ोर की बरसात थी। जैनसाहिबा

प्रेम कविता करता है, और यादें शब्द उकेरती हैं। जैनसाहिबा

अब बेशक पत्थर कह लो, एक मुद्दत मैं भी खुदा रहा हूँ। जैनसाहिबा

यादों के समुन्द्र मे पत्थर फेंक रहीं हूँ, लाज़मी है तुम्हें हिचकियाँ लग जाएँ। जैनसाहिबा

लफ्जों की हरारतें अब नही होती, यादों में हम रूबरू हो लेते हैं। ✍️जैनसाहिबा🍁

ख्वाबों के बताशों में इस कदर घुल जातें हैं वो, कि रातों को चींटिया लग गई मेरी। ✍️जैनसाहिबा🍁

उधारी तो हमने हर एक उतार दी, इक ये इश्क़ तेरा कि चढ़ता ही गया। ✍️जैनसाहिबा🍁


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