वो अपनों के ही तीर है जो घाव आरपार करते हैं
वरना परायो को तो कभी इतना समीप आने नहीं दिया हमनें
-पूजा नाथावत
तेरे इश्क़ के सागर में पुराने ज़ख्म खोल बैठे
अब हर ज़ख्म नया सा है
कितना भी मारो, कोई गम नहीं
पत्थर की हूँ जनाब
तराशि जाउंगी
-पूजा नाथावत
नहीं, कुछ नहीं हुआ
तू मुझे बस यू देखा न कर
-पूजा नाथावत
तू कुछ बोला नही, पर जाने कयूँ मन में हलचल सी थी
हवाओं में कुछ था, या इश्क़ हुआ है
काफी नहीं था ये बेखबर इश्क़, जो उसकी बेखबरी से भी इश्क़ कर बैठे
वो पहाड़ भी टूट गया एक दिन ,
धीरे - धीरे.... कतरा- कतरा
ये इश्क़ ही काफी है तीर चलाने को
हाले दिल पूछ कर और धायल न कर
इश्क़ में तेरे दर्द मिले इतनें,
कि कमबख़्त इस दर्द से इश्क़ हो गया