ख्वाब नही है जिन्दगी जरा अपनी आँखे खोल कर तो देखिये , माना कि खरगोश तुम नहीं कछुओं में ही शामिल हो लीजिये ।। vikash sharma
उम्मीद तो बहुत थी हसरतों का दरिया पार करने की , हसरतें बढ़ती रहीं और मेरी कश्ती को किनारा भी न मिला ।। kumar vikash
देख कर तो तुम्हे यही लगता है , कि हैं दूरियाँ अब भी हमारे बीच । तुम्ही लहजा गैरों सा लिये फिरते हो , मुस्कुराते क्यों नहीं भरी महफ़िल में बीच ।। kumar vikash
मेरी मोहब्बत का अब और क्या इम्तिहान लोगी तुम , छोड़ दिया मैंने तुम्हे सिर्फ तुम्हारी मोहब्बत की खातिर ।। ❤❤❤ kumar vikash
दिल ने तुम्हे ख्वाबों में क्या देखना चाहा , कम्बख्त नींदों ने आँखों से दुश्मनी कर ली ।। kumar vikash
मेरी वफाओं का सिला तुमने , अपनी चंद मुस्कुराहटों से दिया । मैंने जब भी इजहारे इश्क किया , तो तुमने मुस्कुरा के टाल दिया ।।