मौन न्याय मूरत खड़ी,लिये तराजू हाथ ।
पट्टी आँखो में बँधी,न्याय मुकुट है माथ ।।
पल पल वय की क्षीणता,पल को जी भरपूर।
पल में पल मत हारिये,पद के मद में चूर ।।
बीज!अनजान परिस्थिति से,पाता प्रकृति का दुलार
उत्तम खाद पानी ले लेता, उत्तम अंकुरण का भार,
बच्चे!कोमल बीज मानिंद,संस्कार की नींव जो पड़ें
संभव अंकुरण से वटवृक्ष,मातृ शिक्षा ही इसका आधार ।।
दोहा
नारी की रक्षा करे,नियम !दहेज निषेध।
दुरुपयोग अब स्वार्थवश,कानून रहे बेध ।।
दोहा
पाँच शत्रु हैं मनुज के,काम क्रोध अरु लोभ।
उलझे माया मोह जो,मन में होय विक्षोभ ।।