बार बार ख्वाबों में आकर मुझे यूॅं परेशान न कर
गर चलीं ही गई हो तो मुझ पर यूॅं अहसान न कर
रविन्द्र
जिस तरह से तुमने मुझे छोड़ा
मैं आज तक नहीं समझ पाया
कि तुम्हें मुझसे मोहब्बत थी भी या नहीं
रविन्द्र
यादों के सिलसिले कुछ यूं मचलते रहे,
जैसे सूने रेगिस्तान में काफ़िले चलते रहे
रविन्द्र
कुछ तो बात थी हमारी मोहब्बत में सनम,
जो तुम कभी दीवाना तो कभी पागल कह गई
रविन्द्र
उन्हें मोहब्बत हम से नहीं, हमारी दीवानगी से हुई
वो भी तब हुई, जब वो किसी और की हुई
रविन्द्र
तुम्हारा दिल तो अंगूर के गुच्छे की तरहा है,
एक एक दाना हर एक के लिए
रविन्द्र
तुम्हारी हमारी ज़िंदगी भी, नदी के किनारों की तरहा है
जो चलते तो साथ साथ हैं, लेकिन मिल नहीं सकते
हर कोई नहीं होता, सितारा आसमान का |
एक मेरे जैसा भी होता है, जो चाहे दीदार-ए-हुस्ने यार का ||
रविन्द्र राघव