@devanshu-ruparelia

Devanshu Ruparelia
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सफ़र मेरे जनाज़े का भी बनावटी निकला क्यो की ज़िंदगी मे अक्सर सौदेबाजिया ही निभाई थी मैंने।

पुरी ज़िंदगी गोल दुनिया का किनारा ढूँढता रहा मैं पर अपने पे गुमाँ महँगा पड़ा मुजको जब मेरी सुखद ज़िंदगी खुशफ़ेमी दगाबाज़ निकली।

दया को स्वाभाव मे अपनाइये स्वाभाव को दयनीय मत बनाइये।

मौसम का अस्तित्व केवल पतझड़ और बसंत से नही बल्कि पुरानी सोच को छोड़ नई सोच अपनाने से है।

यात्रा का निर्यात्मक प्रारंभ उसके अंत को सुखद या दुःखद बनाता है।

एकता विविधता के परिक्षेत्र और परिमाण को नई दिशा प्रमाण करती है।

सकारात्मक अभिगम बुरी तरह हारने के बाद भी कुछ बड़ा हासिल करने का रास्ता तय करता है।

टेक्नोलॉजी को विज्ञान की विकृति और अभिशाप न बनने दे।

शिक्षा का महत्व शिक्षक से नही किन्तु उसे किस तरह से ग्रहण की जाती है उसमे है।


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