ज़िंदगी भर के लिए इस नजीब के दिल पर निशानी न पड़ जाएं,
बात ऐसी ही लिखता हूं कि कभी लिखकर मिटानी न पड़ जाएं.
अपनी हिम्मत अपना ज़मीर खो चूके है हम,
जागना पड़ेगा अब बहुत सो चूके है हम.
गंदे काम किए तूने ज़िंदगी में पल हर पल
बंदे नेक काम कर ज़िंदगी है पल दो पल
आइने के सामने एक आईना रखता हूं
मैं ख़ुद को खुद की नज़रों में रखता हूं
रिश्तों को कैसे कर दूं मैं कट्ट
नाम है मेरा हितेंद्र ब्रह्मभट्ट
मुझे गले लगाओ तो सुकून मिलेगा ज़रूर
क़िरदार मैंने ताबीज़ जैसा ही रखा हैं हुज़ूर
~ हितेंद्र ब्रह्मभट्ट ©