आत्मा को ले गए तुम प्रेम के महारास में प्रेम अमृत बनके बरसे विरह के वनवास में तुमको पाकर भी हूँ मैं तुमसे मिलन की आस में _ विशुद्ध प्रेम
'कांटे' लगे हैं पैरों में जहां से भी गुजरती हो चुभन छोड़ जाती हो जाने क्या होगा मेरा _विशुद्ध प्रेम ✍
बड़ी मुद्दत से ,मुद्दत की बात की है हर एक शाम अधूरी सी ,शुरुआत की है फर्क है उनकी नज़र का,नजरिए से हमनें तो मोहब्बत में जिंदगी बर्बाद की है _विशुद्ध प्रेम
मेरे मन की बंद दहरी पर प्रेम की हुई, एक नई परिभाषा मैं अधरों से कह नहीं पाती तुम समझे, वो मौन भाषा _ विशुद्ध प्रेम
देखो अमानत है , कितनी कयामत है तस्वीर तेरी दिल में , इतनी सलामत है यादों से अब तेरी पीछा छुड़ाना है...... पल भर में नहीं ये,एक जन्म लग जाना है _Ajita✍