प्रेम सी कविता मैं.. शब्द मेरे संस्कार। आंखों में समा जाऊँ.. जो पढ़ो मुझे एक बार।।
Share with friendsजा लौट गए हम अपनी कस्ती में तू भी मौज रख अपनी मस्ती में ठहरेगा दरिया अब कहानी ना होगी तुमको मेरे बातों से परेशानी ना होगी
कलि के प्रचंड वेग में खोए ये मनुष्य की ज्ञान उड़ चला माया के चक्रव्यूह में उलझा मानवता की जिह्वा मुड़ चला
॥~स्वप्न जीवन की कल्पना में~॥ ॥~अरमानों को पंख लगा दिया~॥ ॥~प्रचण्ड शपथ धर अंदर अपने~॥ ॥~विजय परिणाम बना दिया~॥ ●●●