Devshree Goyal
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अच्छा पढ़ना बेहद पसंद है, और अच्छा लिखने की कोशिश करती हूं।

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विश्राम /दोपहर की झपकी दिन भर ...जलकर दिनकर...मध्यांतर में करते...हैं विश्राम फिर जाते...अस्ताचल अश्वगामी...अभिराम देवश्री गोयल जगदलपुर

विश्राम दोपहर की झपकी दिन भर जलकर दिनकर मध्यांतर में करते हैं विश्राम फिर जाते अस्ताचल अश्वगामी अभिराम देवश्री गोयल जगदलपुर

बांस अर्थी बनाने के काम आती है।किंतु जब इसी बांस में छिद्र किया जाता है तो ,यह बांसुरी बन माधव के मुंह लग कर अपने मधुर स्वर से राधिका को नृत्य करने पर विवश कर देती है।अर्थात जब तक कष्ट नहीं मिलता,तब तक केश्टो(कृष्ण) भी नहीं मिलते। बोलो राधे राधे

कांच को दर्पण बनने के लिए अपने एक सतह को रजत लेप से ढंकना पड़ता है ,तब वह दूसरों को उनकी वास्तविकता दिखा पाता है। विशिष्ट बनने के लिए कुछ विशेष होना भी जरूरी है।क्यों सही है न??😊 देवश्री गोयल जगदलपुर


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