कोई कलम से बन जाता है
कोई कलम से मिट जाता है
ये कलम ही है जो इंसान
को चलाता है
कुछ अन्नदाताओ को मैंने दुखी होते देखा है
भरते तो है ये हमारा पेट
पर खुद के पेट के लिए इनको
रोते देखा है
ये फसल हमारी है
और वो मोल लगाने आये है
अब जगोगे दिल्ली वालों
हम संसदभवन हिलाने आये है
चलो इस जनम नही
अगले जनम ही सही
सजाएंगे अपना अलग जहांन
बन जाएंगे इक-दूजे की जान
है गवाही इस कलम की
जो जानती है गम मेरा
रोया अगर मैं नही
तो रोया है कलम मेरा
कुछ गीत लिखे
कुछ साज लिखे
पड़ना चाहो जिसको तुम
मैंने वो अल्फ़ाज़ लिखे
जाने के बाद तेरे जीना
भी क्या जीना होगा
हम जीयगे तो रोज
पर मरते मरते जीना होगा
चलो इस जनम नही
अगले जन्म ही सही
सजायेंगे अपना अलग जहांन
बन जाएंगे इक दूजे कीं जान
हूं मैं ऐसा राहगिर जो
चल रहा हूँ बफिकर
खो चुका हूं सब मगर
भुला नही अपना सफर