कितने भी हों लोगों के बीच,अंततः ख़ुद को अकेली ही पाती हूँ।
ख़ुदा भी सोंचता होगा हक़ीक़त देख दुनियां की,
बनाया था जो मैंने आदमी, क्या आदमी निकला!!
-----––- Ragini singh.-------
ख़ुदा भी सोंचता होगा हक़ीक़त देख दुनियां की,
बनाया था जो मैंने आदमी, क्या आदमी निकल!
ख़ुदा भी सोंचता होगा हक़ीक़त देख दुनियां की,
बनाया था जो मैंने आदमी, क्या आदमी निकला!