कि लिख कर बार- बार उसी का नाम मिटा रहा हू... मै उसी को भुलाने के लिए उसी के किस्से याद किए जा रहा हू।।
वो भूल गए तो क्यों तमाशा -ए- इश्क बनाए हम..सहूलियत इसी में है कि इस गम को शराब में मिलाए और चुपचाप पी जाए हम।।
शिकायते मुंह फूला लेती है मुझसे
जब मैं तुम्हारी करती हू तुम से।।