"कैसे कहूं की कुसूर तुम्हारा है
मैंने मोहोब्बत, इबादत, वफ़ा इस कदर दी तुझको
की मेरी रूह के आगे तुझे रोते हुए जाना पड़ा"
इबादत तो हमने भी की तूझसे
ये वक्त थमने को
सिला जो मिला
वो फिसलती हुई रेत का था
मिन्नते तो हमने भी की थी
तुझको दर्ज ये दिल गुफ्तगू करने का
सिला जो मिला
वो जुदाई का था
@दीप SHARMA