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उस नर्क में क्यों लौटी पार्वती?

उस नर्क में क्यों लौटी पार्वती?

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सुनते आये हैं -पार्वती ने तो बीवी सुख ही न देखा। जिस दिन को माँ बाप ने फेरे पड़वा कर भेजी, बस सास ने जीने ही न दी बेचारी।

एक तो उसका ख़सम निकम्मा, तिस पर सास के मन न चढ़ सकी।

दोनों बहन गोमा और पार्वती का ब्याह साथ साथ किया था मिश्री प्रसाद ने। दोनों का ससुराल भी एक ही गाँव में था। सांवले रंग की गोमा तो झट से पति के मन भा गयी और गृहस्थी में बस गयी। दूसरी तरफ गौर वर्णा पार्वती, सीधी सादी, गाय सी, पहले दिन से ही जूते की नोक पर रखी गयी।

एक दिन तो हद ही हो गयी जब सब्ज़ी कच्ची रह जाने पर सास ने पार्वती के हाथ कोहनियों तक जलते चूल्हे में दे दिए। कैसे उपाद आये थे बेचारी के हाथ। रोई तो सास और पति ने मिलकर उसे मारा। भला हो उस पड़ोसी का जिसने गोमा को जा बताया की तेरी बहन तो मरने को पड़ी है। सिर पर पैर रख के भागी थी गोमा। दौड़ी-दौड़ी पहुँची तो पार्वती की सास ने दरवाज़े पर ही रोक दिया। गोमा ने हार मानना नहीं सीखा था। एक धक्का उस खुर्राट बुढ़िया को दे जा पहुँची भीतर वाले कमरे में जहाँ पार्वती पड़ी सुबक रही थी। उसके जले हाथ और पैरों पर पड़े नील देख कर गोमा का खून खौल उठा। पकड़ बहन का हाथ, उसे संग ले चली। साँस रोकने चली थी, तो एक धक्का और खा कर बस बिलबिलाती रह गयी।

जिस दिन तक भाई डालचंद खैर से अपनी दुनाली लिए न आ गया, न बुध कुमार और न उसकी माँ को पार्वती तक पहुँचने दिया गया। भाई के तन बदन में चिठ्ठी पढ़ कर ही आग लग गयी थी, रही सही कसर पार्वती के ज़ख्मों और आंसुओं ने पूरी कर दी। जहाँ जहांगीराबाद में खबर फैली कि खैर से भाई हाथ में सरकारी दुनाली लिए आया है, बुध कुमार और उसकी माँ घर की कड़ी लगाये दुबक कर बैठ गए। कई बार दरवाज़ा खोलने पर भी कोई बाहर न निकला।

तब पंचायत बुलाई गयी। सबके सामने पार्वती के दुःख सुनाये गए। सबने देखी उसकी आँसू भरी आँखें, सोने चांदी से विरक्त उसके हाथ, कान और नाक। कंकाल से हुए शरीर पर लपेटी फटी साड़ी देख कर कलेजा मूँह को आने होता था। पुलिस थाने में बाकायदा रिपोर्ट लिखवाई गयी और सर्वसम्मति से पार्वती भाई का हाथ थामे फिर उसी घर चल पड़ी, जहाँ से फेरे पड़वा के माँ बाप ने विदा किया।

सुना है कि पूरे छह साल पीहर में बिताने के बाद वो लौटी थी।

पर लौटी ही क्यों? डालचंद तो कह के ले गया था की अब तलक हम तीन भाई थे, आज से चार हुए। तेरे खाना खाए पीछे ही हम में से कोई टुकड़ा तोड़ेगा। ऐसे पलक पांवड़े बिछाते पीहर को छोड़, उस नर्क में क्यों लौटी पार्वती?

 


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