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क्रोध पर विजय

क्रोध पर विजय

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रमेश बहुत ही मेहनती वकील थे। वह अपने काम को ईमानदारी और परिपूर्णता से करना चाहते थे। एक सीनियर वकील के अंदर में वह काम करते थे। वह दिल्ली में काम करते थे। एक बार उनके बॉस का एक क्लाइंट, जोकि बेंगलुरु का रहने वाला था, जरूरी काम से दिल्ली बुलाया। बेंगलुरु वाले क्लाइंट का काम रमेश को दे दिया।

रमेश हमेशा अपने काम में व्यस्त रहते थे। उनके ऊपर हमेशा अतिरिक्त काम करने का दबाव रहता था।इसके बावजूद वह कभी भी काम करने से कतराते नहीं थे। उनकी इसी विशेषता के कारण उनके बॉस का उनके ऊपर अति भरोसा प्रेम था।

काम का दबाव बहुत ज्यादा होने के कारण रमेश उस बेंगलुरु वाले क्लाइंट का काम करना भूल गए थे। जब बेंगलुरु वाला क्लाइंट दिल्ली आया तो रमेश के बॉस ने उसके काम के बारे में पूछा। रमेश के दिमाग से यह बात बिल्कुल उतर गई थी। उनके बॉस को बेंगलुरु वाले क्लाइंट के सामने शर्मिंदा होना पड़ा। इस कारण रमेश के बॉस ने रमेश को बेंगलुरु वाले क्लाइंट के सामने बहुत कुछ बुरा भला कहा।

बेंगलुरु वाले क्लाइंट के सामने तो रमेश ने कुछ नहीं कहा लेकिन उसके दिमाग में बहुत सारी बातें घूम रही थी। अपने अपमान के कारण उसको काफी क्रोध आ रहा था. वह जाकर बॉस से काफी बातें बताना चाह रहा था। वह बताना चाह रहा था कि वह दिन-रात उनके लिए मेहनत करता है। अपने परिवार से ज्यादा अपने काम को महत्व देता है। उसके बहुत सारे सहकर्मी केवल समय व्यतीत करना चाहते हैं पर वह अपने काम को लगन और ईमानदारी से करता है। उसे इस तरह की अपमान जनक बातों का सामना करना क्यों पड़ रहा है? वह गुस्से में आग बबूला होकर बॉस के पास जाकर सारी बातें बताना चाह रहा था।

रमेश के एक सहकर्मी को यह बात मालूम चली। रमेश का सहकर्मी रमेश को बहुत स्नेह करता था और रमेश के प्रति उसके मन मे प्रति अपार श्रद्धा थी। वह जान रहा था कि यदि इस समय यदि रमेश जाकर अपने बॉस से बात करेगा तो परिस्थितियां काफी खराब हो सकती है। रमेश को बोला ज़रा रुक जाओ, थोड़ा ठहर जाओ, अभी मत जाओ। रमेश नहीं माना और वो आगे बढ़ते ही चला जा रहा था। तब रमेश के सहकर्मी ने कहा ठीक है मुझे केवल 3 मिनट का समय दो । मैं तुम्हें एक छोटी सी कहानी सुनाता हूं। इसके बाद जो करना हो कर लेना.

यह एक संत की घटना है। संत के बारे में कहा जाता था कि वह बहुत ही शांत प्रवृत्ति के व्यक्ति थे। किसी भी तरह की परिस्थितियां क्यों ना हो, कोई कितनी भी अपमान जनक बातें क्यों न करें, कितनी भी परिस्थितियां खराब क्यों न हो ,वह हमेशा अविचल और शांत ही रहते थे। उनसे उनके एक शिष्य ने इसका राज पूछा तो उस संत ने बताया कि मरते समय संत ने अपने पिता से पूछा कि जीवन जीने का मूल मंत्र क्या है? तो उस संत के पिता ने कहा बेटा मैं तुम्हें केवल एक ही शिक्षा देता हूं कि जब भी तुम्हें गुस्सा आए तो तुम 24 घंटे रुक जाना। फिर 24 घंटे के बाद जिस आदमी पर भी जिस कारण से भी गुस्सा आए उसके साथ जो कुछ भी करना चाहो जा कर कर लेना।

संत ने कहा मैं अपने पिता की आज्ञा का पालन करता हूं। मैं अपने पिता के इसी मूल मंत्र का आचरण करता हूं। जब भी मुझे किसी पर गुस्सा आता है। जब भी मुझे किसी पर क्रोध आता है, मैं तुरंत प्रतिकार नहीं करता। अपने पिता की आज्ञा के अनुसार मैं 24 घंटे इंतजार करता हूं। 24 घंटे में मुझे उन सारी परिस्थितियों के बारे में मंथन करने का मौका मिल जाता है। फिर 24 घंटे के बाद मेरे मन में गुस्सा का कोई भाव नहीं रहता। जब भी तुमको किसी परिस्थितियों में किसी पर गुस्सा आए तो तुम बस 24 घंटे का इंतजार कर लेना। इसका अपने जीवन में पालन करने से विजय की प्राप्ति हो जाती है।

रमेश के सहकर्मी ने यह कहानी सुनाई । यह सुनकर रमेश थोड़ी देर के लिए रूक गया। उसने सोचा ठीक है मैं 1 दिन का इंतजार कर लेता हूं। उसके बॉस ने रमेश को फिर बुलाया। रमेश ने कहा ठीक है 3-4 घंटे का समय दीजिए। मैं काम को पूरा कर देता हूं। और फिर 3-4 घंटे के भीतर बेंगलुरु वाले क्लाइंट का काम पूरा करके दे दिया। इस तरह से बेंगलुरु वाला क्लाइंट संतुष्ट होकर चला गया।

अगले दिन रमेश बस बताने वाला था कि किन परिस्थितियों में उसे काम करना छूट गया था। वह अपने बॉस के पास जाकर ज्योही यह बताने वाला था, उससे पहले ही उसके बॉस ने रमेश से कहा कि मैंने जो व्यवहार किया, उसके लिए मुझे बहुत दुख है। मुझे इस तरह का व्यवहार नहीं करना चाहिए था। रमेश के बॉस उसके सामने अपराध की भावना से बोल रहे थे और आंखों से क्षमा याचना मांग रहे थे।

रमेश को भी समझ में आ गया था कि कल की प्रतिक्रिया उनके बॉस के ऊपर काम के दबाव के कारण था। रमेश बिना कुछ कहे चुपचाप नीचे आ गया। उसको यह बात समझ में आ गई थी कि यदि किसी भी परिस्थिति में आपको गुस्सा आए तो 24 घंटे का इंतजार कर लेना चाहिए। एक आदमी के मन में गुस्सा आता है, यदि एक आदमी के मन में क्रोध आता है ,यदि एक आदमी के मन में तनाव पैदा होता है, तो आदमी यदि उसी समय प्रतिक्रिया ना करे, अपितु 24 घंटे का इंतजार कर ले और उन कारणों को समझने की कोशिश करें जिनसे इस तरह की परिस्थितियां पैदा हुई है। फिर उन कारणों को खत्म करने की कोशिश करे ,तो निश्चित रूप से उसके मन में क्रोध पैदा होता है, या उसके मन में जो गुस्सा होता है वह 24 घंटे के भीतर ग़ायब हो जाता है।

स्वयं के क्रोध पर नियंत्रण करने का बस यही उपाय है। और वह है शांति भाव से 24 घंटे का इंतजार करना। शांति भाव से विपरीत परिस्थियों का सामना करना। इस ज्ञान का पालन करते हुए रमेश आँफिस इसमें काफी लोकप्रिय हो गया। इस तरीके से रमेश ने अपने क्रोध पर नियंत्रण पा लिया।


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