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Vinita Rahurikar

Drama

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Vinita Rahurikar

Drama

पिता

पिता

3 mins
408


देर रात जब गिरीश घर पहुँचे तो बिंटू सो चुका था। गिरीश फिर एक अपराधबोध से घिर गए। रोज ही बिंटू उनकी राह देखते हुए आखिर थक कर सो जाता और वे घर में कदम रखते ही एक ग्लानि सी महसूस करते की आज भी उसे समय नहीं दे पाए।

लेकिन मजबूर थे। शहर के जाने-माने डॉक्टर जो थे। मरीज उनकी पहली प्राथमिकता थे। ऐसे में बेटे से दूरी बढ़ती जा रही थी। सुबह उनके उठने के पहले वो स्कूल निकल जाता। शहर का मशहूर, कामयाब, मरीजों के लिए भगवान समान डॉक्टर चाहकर भी पिता नहीं बन पा रहा था। बहुत दिनों से मन विचलित था।

सीढियां चढ़ते हुए पिता के कमरे पर नजर गयी तो लाइट जलती देखी। शायद कोई केस स्टडी कर रहे होंगे। पता नहीं क्यों आज बहुत भावुक हो गए गिरीश और हौले से दरवाजे पर दस्तक दी- "पिताजी"

"अरे गिरीश आ गए, आओ-आओ" पिता ने किताब से नजर उठाकर ऊपर देखा "क्या बात है बेटा कुछ परेशान से लग रहे हो, अस्पताल में कोई सीरियस केस आ गया क्या?"

"नहीं पिताजी ऐसी तो कोई बात नहीं। बस दो मिनट आपसे बात करने का मन किया।" गिरीश भरे गले से बोला।

"हाँ बोलो न" पिताजी ने कहा।

"बचपन से ही देखता रहा कि आप इतने व्यस्त रहे कि कभी मुझे समय नहीं दे पाए। एक शिकायत सी तब मन मे पलती रहती थी मन में कि आपको मुझसे बिल्कुल भी प्यार नहीं है। आपके लिए बस अस्पताल, मरीज और अपने प्रोफेशन ही सबकुछ है। लेकिन...." गिरीश का गला भर आया।

पिताजी ने उसे एक गिलास पानी दिया।

"आज जब खुद उसी मुकाम पर खड़ा हूँ तब आपकी मजबूरी समझ आ रही है कि एक डॉक्टर के कंधों पर कितनी बड़ी जिम्मेदारी होती है।" दो घूँट पानी पीकर गिरीश बोला।

"हाँ बेटा। पिता भी कभी मजबूर हो जाता है। मैं तुमसे तब भी बहुत प्यार करता था, आज भी उतना ही करता हूँ। तुम्हे समय न दे पाने का अपराधबोध हमेशा मुझे अंदर से सालता रहता लेकिन...." पिता ने आँखे पौंछते हुए कहा।

"हाँ पिताजी आज समझ गया हूँ कि पिता सच में अपने बच्चों से बहुत प्यार करते हैं चाहे वो कह पाएँ या न कह पाएँ। समय दे या न दे पाएँ लेकिन उनके मन में हर समय बस बच्चों का ही ख्याल बना रहता है। मेरी सोच के लिए मैं शर्मिंदा हूँ, मुझे माफ़ कर दीजिए।" गिरीश पिता के घुटनों पर सर रखकर बैठ गए।

गिरीश के सर पर हाथ फेरते हुए डॉ विकास की आँखों से आँसू बहने लगे "आज मैं वास्तव में अपने बेटे का पिता बन गया।"

और पिता के स्नेह में भीगे डॉ गिरीश के मन पर आज एक सुकून की छाया उतर रही थी 'किसी दिन तो वे भी अपने बेटे के पिता बन ही जाएँगे। उनका बेटा भी उन्हें समझ जाएगा।'


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