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गुड डिप्रेशन

गुड डिप्रेशन

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शाम का वक़्त, सूरज की लालिमा और गंगा की धारा, ऐसी सुंदरता कहीं नहीं है। जय गंगा मईया और ये आखिरी सूर्यदर्शन बोलकर निहारिका पुल पर से छलांग लगाने ही वाली थी कि, पीछे से उसे किसी ने टोका। अरे रुको... ये तुम क्या करने जा रही हो, निहारिका ने मुड़कर देखा तो एक लड़का खड़ा था। निहारिका ने कहा,”तुम्हे मतलब,मैं कुछ भी करूँ”। और ज्यों ही निहारिका ने छलांग लगाने की कोशिश की, तभी उस लड़के ने निहारिका को पीछे खींच लिया। निहारिका ने रोते हुए कहा,”अब चैन से मरने भी नहीं दोगे क्या? कोई जीने तो देता नहीं और मरो तो भी कोई न कोई आ जाता है”। वैसे तुम हो कौन? इसपर जवाब आया, मैं निखिल हूँ। लेकिन तुम सुसाइड क्यों करना चाह रही हो? निहारिका ने कहा,” क्योंकि मैं अच्छी बेटी नहीं हूँ। निखिल ने फिर पूछा, पर ऐसा क्या हुआ जो तुम सुसाइड करना चाह रही हो। निहारिका खूब रोए जा रही थी और रोते हुए ही उसने कहा,”मैंने पांच सालों तक मेडिकल की तैयारी की,कोचिंग गई और तो और सपनों का रिजर्वेशन स्टाल कोटा भी गई पर... मेरा सिलेक्शन नहीं हुआ और मेरे कुछ क्लासमेट तो अभी मेडिकल कॉलेज में पढ़ भी रहे हैं”। इतने पैसे खर्च हुए पर कोई फ़ायदा नहीं हुआ, एक साधारण परिवार में पैसों की कीमत क्या होती है, ये सिर्फ मैं हीं समझ सकती हूँ। सब लोग मुझे ताने मारते है और हीन नजरों से देखते हैं। मानों मैंने कोई बहुत बड़ा अपराध किया हो। मुझे भी ये सब अच्छा नहीं लगता, हटो तुम मुझे मरने दो।

पता नहीं मैंने तुम्हे सारी बातें क्यों बताई। जाओ मुझे अकेला छोड़ दो, पर तुम यहाँ क्यों आये हो। तुम्हारे साथ भी कुछ बुरा हुआ है क्या? या तुम.. निहारिका ने अपनी बात पूरी भी नहीं की थी की निखिल नदी में कूद गया। निहारिका परेशान अब वह क्या करे, तुरंत वह नीचे आई और निखिल को आवाज़ देने लगी पर निखिल तो कहीं दिख ही नहीं रहा था। अनहोनी की आशंका से निहारिका की आँखे भर आई और वह रोने लगी। तभी पीछे से किसे ने उसके कंधे पर हाथ रखा, पीछे मुड़ी तो निखिल खड़ा था। निहारिका एकदम से डर गई और हकलाते हुए पूछा तुऽऽऽ म तो डूब गये थे न तो.. निखिल ने कहा,”एक्सपीरियंस मैडम, मुझे तैरना आता है। पर तुम क्यों इतना रोए जा रही हो, हम तो अभी अभी मिले हैं न, इतने ही देर में मुझसे इतना लगाव। तो सोचो अगर तुम यहां से कूद जाती तब तुम्हारे घरवालों का क्या हाल होता, उनके साथ तो तुम जन्म से रहते आ रही हो। उनका क्या हाल होता बताओ”? निहारिका ने कहा, पर तुम क्यों इतने विश्वास से कह रहे हो। उन्हें तो ख़ुशी होती” बीच में ही टोकते हुए निखिल ने कहा,”नहीं ख़ुशी नहीं, घोर दुःख और बाकि लोग बातें बनाते, पता नहीं क्या हुआ जो सुसाइड कर लिया। तुम अपनी बात बताओ, बहुत बड़ी बड़ी बातें कर रहे हो। खुद की जिंदगी अच्छी चल रही होती है तो हर तरफ़ हरियाली हीं देखती है, कभी मेरी जिंदगी जी कर देखो” निहारिका ने पूछा।

 निखिल ने कहा,”मैं एक बार मर चूका हूँ, एक बार। निहारिका ने कहा,”लोग तो एक बार हीं मरते है और अभी तो तुमने नदी में छलांग लगाई थी..मतलब तुम भटकती आत्मा हो, भूत होऽऽऽऽ निखिल ने कहा,”अरे नहीं मैं जिन्दा हूँ” मैंने भी एक बार सुसाइड का प्रयास किया था, पर मरता उसके पहले हीं मुझे हॉस्पिटल में भर्ती कर दिया गया, लगभग चार महीने मैं कोमा में रहा। कभी होश भी आता तो सबको रोते हुए पात, सबकी आँखे नम थी सिर्फ मेरे लिए। मैंने भी कोई बहादुरी का काम नहीं किया था , पर तुमने सुसाइड करने का प्रयास क्यों किया? ( निहारिका ने पूछा)

मैंने iit दिया पर सिलेक्शन नहीं हुआ, मेरे नंबर हमेशा से अच्छे आते रहे हैं पर कम्पटीशन में मैं फेल हो गया। फिर मैंने कुछ और सोचा, पर उन सब में भी मुझे हार हीं मिली। मैं बहुत निराश हो गया, हर दिन मुझे ताने मिलने लगे। मुझे सब बेकार, निर्जीव सा लगने लगा और मैं डिप्रेशन में चला गया। मैं घंटो अकेले बैठा रहता और न चाहते हुए भी रोता और एक दिन मैंने भी यहीं से छलांग लगाई थी पर मुझे जीना था शायद इसलिए बच गया।

निहारिका चुपचाप निखिल की बातें सुन रही थी। निखिल ने फिर कहा जब मैं हॉस्पिटल में भर्ती था, तभी मैंने जीना सीखा कि लोगों को जीने की चाह होती है पर जिंदंगी उनका दामन छोड़ना चाहती है”, ”वह हर कोशिश करते है जीवन पाने की पर..हर कोशिश कामयाब हो ऐसा नहीं होता”। मैं कितना पागल था जो खुद हीं मौत को गले लगाने चला गया, उसके बाद मेरे जिंदगी के मायने ही बदल गये। मुझे कोई हारा हुआ न कहे इसलिए मैंने जी जान से सिविल सर्विसेज की तैयारी की और अब मेरा इंटरव्यू होने वाला है। उस दिन के बाद से मैं रोज यहाँ आता हूँ और अपने लिए सुकून तलाशता हूँ, कवितायेँ लिखता हूँ, कहानियाँ लिखता हूँ और लोगों को उनकी जान की कीमत बताता हूँ”।

निहारिका को अपनी गलती का एहसास हो चूका था की अनजाने में ही, पर वह कितना बड़ा गुनाह करने जा रही थी। वह निखिल को बार बार धन्यवाद दिए जा रही थी। निखिल ने उससे कहा,”डिप्रेशन हमें अकेलापन देता है, पर अगर हम उसी अकेलेपन का फ़ायदा आत्मचिंतन में लगायें, खुद को बेहतर बनाने में लगायें, खुद के लिए एक नयी राह तलाशने में लगायें तो यह डिप्रेशन हमारे लिए “गुड डिप्रेशन” हो सकता है। हाँ तुमने सही कहा निखिल, मुझे भी अपने लिए एक नयी राह तलाशनी होगी, मुझे अपने शौक को भी एक मौका देना होगा। मैं भी अब लोगों को जागरूक करुँगी, ताकि वे कोई भी गलत कदम न उठाए। डिप्रेशन हो भी तो वह “गुड डिप्रेशन” हो।

ढ़लता हुआ सूरज कल पुनः अपने काम पर होगा। निहारिका जिसे कल का सूरज देखने की चाह भी नहीं थी, उसे कल के सूर्योदय का इंतज़ार था, हो भी क्यों न उसे जीने की वजह जो मिल गई थी।


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