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Sajida Akram

Inspirational

4.3  

Sajida Akram

Inspirational

वो पूजा के फूल

वो पूजा के फूल

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आज बहुत दिनों बाद घर के लॉन आवाज़ लगाई किसी लेड़िज़ ने आंटी जी मैं फूल तोड़ लूं, पूजा के लिए चाहिए। उसकी ये आवाज़ मुझे करीब 30 साल पीछे चली गई जब मैं नई-नई शादी हो कर आई तो मैंने देखा मेरी सासूमां ने सरकारी क्वार्टर में छोटा-सा गार्डन लगा था और उसमें एक बेलिया "गुलाब " था, उसमें बहुत फूल आते थे, मैंने देखा।

मेरी सासूमां की घर में बहुत चलती थी या ये कहें घर में और मोहल्ले में बहुत मान था।

एक दो दिन में मैं समझ गई के घर में ये चलन है के गुलाब के फूलों को तोड़ कर एक डालियां भर के बाहर के कमरे में रख देते थे। मुझे लगा कि ऐसे ही रख देते होगें ख़ुशबू के लिए, मगर थोड़ी देर में जैसे ही आठ-नौ बजते ही हमारे मोहल्ले की लेडिज़ आती दरवाज़ा भिड़ा रहता आवाज़ लगाती "अम्मी जी"फूल ले जा रही हूँ। मैंने देखा धीरे-धीरे फूल की डालिया ख़त्म।

अब समझी मैं, ये तो बड़ी अच्छी गंगा-जमुना तहज़ीब है।

बस मैं भी दिल से उनके इस नेक काम में साथ देने लगी। मोहल्ले की सारे लोगों में मेरी सासूमां की बड़ी रिस्पैक्ट थी, सब अपने मसले लेकर आते या किसी को पैसे की ज़रूरत होती वो सबकी मदद करती हर दुख-सुख में शामिल होती।

मैंने अपनी सासूमां का ही तरीक़ा इख़्तियार किया थे तो मुस्लिम परिवार से मगर हर मज़हब का एहतराम करना मैंने अपने अब्बा और अम्मी से भी सीखा था। यहां सासूमां की तरह आज भी "पूजा के फूल " मेरे घर से ले जाती है।

मेरी तन्द्रा भंग हुई उस लेडिज़ की आवाज़ से। मैंने कहा, हाँ बेटा ले जाओ यहां हर वक़्त" पूजा के फूलों" के लिए दरवाज़े खुले हैं।


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