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वक़्त

वक़्त

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हमेशा की तरह उसे देर तक काम करना पड़ा, उसका पति अभी तक ऑफिस में था। उसका बच्चा बीमार था, पर अभी आराम से सोया था। वो बस लेटी ही थी कि उसके पति ने डोरबेल बजायी। वह दरवाजा खोलने उठती है।

स्निग्धा:- आज इतनी देर कैसे हो गयी निकुन ?

निकुन:- बस मत पूछो !

स्निग्धा:- लगता है अभी भी ज्यादा काम है, तुम तो बोल रहे थे आज से सब खत्म हो जाएगा।

स्निग्धा जब खाना लेकर आती है तो निकुन अपने 8 महीने के बेटे शिव्य के छोटे-छोटे हाथों से खेल रहा था। स्निग्धा ये देखकर हल्के-हल्के मुस्कराती है, ऐसा लगता है जैसे दिन भर की सारी थकान ये लम्हा देखकर मिट गई है। वो मन ही मन उन दिनों को याद करती है जब शादी से पहले वह और निकुन दोनों साथ में एक साथ ऑफिस से आया करते थे और साथ मैं ही घर का काम किया करते थे। उन दिनों में शायद थकान नहीं थी बस एक अलग सा खूबसूरत अहसास साथ रहता था, जो जिंदगी में हर एक फर्द के साथ बीतता है।

जब निकुन ने देखा तो स्निग्धा हाथ मे प्लेट लिए बस हल्के हल्के मुस्करा रही थी। निकुन सामने से उसका माथा चूमता है तब जाके उसका खुली आँखों का सपना टूटता है।

निकुन (मुस्कराते हुए):- कहाँ खो गयी थी मैम ?

स्निग्धा क्षेपते हुए कुछ नहीं बोलती है।

स्निग्धा निकुन से उसके आफिस का हाल पूछती है और निकुन शिव्य के बारे में। दोनों जब खाना खाकर उठते है तो निकुन स्निग्धा से कहता है, तुम आराम करो मैं सब देख लूँगा।

स्निग्धा फिर एक बार सोचती है कि निकुन पहले से कितना बदल गया है लेकिन ये बदलाव अच्छा था। पहले वो काम मे आनाकानी करता था पर शादी के बाद से बड़ो जैसा व्यवहार करने लग गया है। निकुन जानता था कि स्निग्धा उससे ज्यादा पढ़ी-लिखी है लेकिन उसने उसके प्यार की वजह से ही तो उसके माँ-बाप के कहने पर नौकरी छोड़ दी थी। निकुन के माँ-बाप रूढ़िवादी सोच के थे जो एक ब्राह्मण परिवार में एक वैश्य परिवार की बेटी को नहीं लाना चाहते थे पर निकुन की जिद के आगे वो हार गए थे पर अपनी एक शर्त मनवा ली थी।

यह आज हमारे समाज की विडम्बना है कि 21वीं शताब्दी में भी लोग जाति व्यवस्था को मानते हुए ऑनर किलिंग से भी पीछे नही हटते। एक पढ़े-लिखे समाज ये सब होना शोभा नही देता। सैराट मूवी इस बात का एक बहुत अच्छा उदाहरण है। एक लोकतंत्र में बच्चों को अपने मन मर्जी से शादी नहीं करने देना उनके अधिकारों का उल्लंघन है। कभी-कभी इसे लव जिहाद का नाम भी दे दिया जाता है।

वक़्त यों ही बीतता गया, निकुन अब कंपनी की शाखा का डिप्टी हो गया था। अब शिव्य भी 4 साल का हो गया। इन सभी बातों में जो सबसे ज्यादा परेशान था वो थी स्निग्धा ! क्योंकि अब निकुन के पास समय नहीं था, अक्सर वो कम्पनी के काम से आउट ऑफ स्टेशन ही रहता था। अब घर आकर वो सिर्फ सोता था।

जब भी स्निग्धा उसे फ़ोन करती तो वो सिर्फ टेक्स्ट करके जवाब दे देता। अब स्निग्धा को ऐसा लगने लगा था जैसे वो एक आया हो जो निकुन के लिए नाश्ता बनाती है, उसके बच्चे को देखती है और उसकी जरूरतें पूरी करती है।

निकुन कोई भी फर्क नहीं पड़ता था कि स्निग्धा ने कुछ खाया है भी या नहीं, उसे मतलब था तो सिर्फ अपने काम से और अपने बेटे शिव्य से !

जब भी स्निग्धा कुछ काम करने में देर लगाती या उससे कुछ काम नहीं हो पाता था तो निकुन ऐसे ताने मारता था जैसे स्निग्धा दिन भर खाली बैठी रहती हो। एक दिन उसने इतना भी कह दिया कि तुम्हें क्या पता ऑफिस का काम क्या होता है ? शायद वो भूल गया था कि आज से 5 साल पहले वो उसकी सीनियर थी और उसके प्यार की वजह से उसने अपनी जिंदगी का सब कुछ उसके नाम कर दिया।

एक दिन जब अचानक निकुन घर जल्दी आ गया तो, स्निग्धा उसके लिए कॉफ़ी लायी। वो कुछ परेशान सा था।

स्निग्धा:- क्या हुआ, इतने टेंस क्यों हो ?

निकुन:- कुछ नहीं यार, बस यूं ही आफिस की थकान !

स्निग्धा बोली जब आज जल्दी आ ही गए हो तो क्यों न हम आज कहीं बाहर चले, लेकिन निकुन इसके मूड में नही था। अचानक से वो हुआ जो पिछले तीन सालों में नही हुआ था, निकुन सोफे पर पैर फैला कर स्निग्धा की गोद मे लेट गया, जैसे कि शिव्य सोया करता था। स्निग्धा इन लम्हों जितना खुश थी उतना ही उसे डर लग रहा था कि क्यूँ निकुन ऐसे कर रहा है ? जो हमेशा अपने लैपटॉप पर बिजी रहता था वो आज मेरे पास सुकून पा रहा है पर स्निग्धा इस वक़्त कुछ न सोच कर बस लम्हे को जीना चाहती थी।

अगले दिन जब सुबह स्निग्धा उठी तो उसे ऐसा लग जैसे वो एक सपना देख रही हो। निकुन उसके लिए नाश्ता बनाकर उसके बेड के पास खड़ा हुआ था। स्निग्धा उसे प्यार भरी नजरों से देखती है।

निकुन उसे आलिंगन में लेता है 'गुड मॉर्निंग' बोलता है।

स्निग्धा खिड़की की तरफ देखते हुए बोलती है- आज सूरज किस तरफ से ऊगा है ?

निकुन:- क्यों , मैं एक दिन तुम्हारी जगह नहीं ले सकता ?

स्निग्धा इन सब बातों से खुश तो थी पर न जाने उसे ऐसा लग रहा था जैसे कुछ गड़बड़ है पर वो इन बातों से ज्यादा परेशान न होकर रहने लगी।

कुछ दिनों तक निकुन ऐसे ही रोज करने लगा पर वो ऑफिस जाना बन्द कर चुका था। स्निग्धा के पूछने पर वह हमेशा टाल जाता था।

एक दिन जब स्निग्धा उसके पास बैठी थी तब उसने उससे प्यार से पूछा तो निकुन बस शांत था । जब उसने निकुन की आंखों में देखा तो वहाँ आंसू भरे हुए थे।

निकुन हिचकी लेते हुए बोला:- मेरी नौकरी अब नहीं रही।

स्निग्धा ऐसे बैठी रह गयी जैसे उसमे जान ही नही रह गयी।

निकुन बोला :- उन्होंने मेरी हर एक वर्कशाप में फंडिंग बन्द कर दी है।

स्निग्धा कुछ बोलना चाह रही थी पर उसे लग रहा था जैसे उसके पास कोई अल्फ़ाज़ ही न हो पर वो निकुन की सारी बातों को भूल जाना चाहती थी जो उसने उसके साथ किया था। वो याद कर रही थी कैसे निकुन महीनों उसके साथ बात नहीं करता था और बस अपने मुकाम की जद्दोजहद में सबको भूलता जा रहा था। आजकल की वो महिलाएं जो अपने घर के कारण अपने जीवन के लक्ष्यों के बलिदान कर देती है वो उनमे से एक थी। एक हाई प्रोफाइल लड़की होने के वावजूद वो एक सच्ची पत्नी बनने की कोशिश कर ही थी।

स्निग्धा ने निकुन के सिर पर हाथ फिराते हुए उसके आँसू पोंछते हुए कहा:- कोई बात नहीं निकुन तुम दूसरी जॉब ढूंढ़ लेना और तुम इतना तजुर्बा रखते हो कि कोई भी कंपनी तुम्हे अपने यहाँ रखने में कोई संकोच नहीं करेगी।

निकुन को पता था कि ये सब इतना आसान नहीं है। वो अपना सिर किसी बच्चे की तरह स्निग्धा की गोद में रखकर दबवाये जा रहा था और सिसकियां ले रहा था। वो सोच रहा था कि मैंने उसके साथ ऐसा न किया होता, मैंने कितना जुर्म किया है इस मासूम पर।

स्निग्धा उसे अपने आलिंगन में लिए हुए अपने कुछ साल भूल जाना चाहती थी जो एक औपचारिक वैवाहिक जीवन के रूप में गुजरे थे और इन दर्द भरे लम्हों में भी एक रूहानी अहसाह खोज रही थी।

अगली सुबह जब स्निग्धा उठी तो निकुन, शिव्य का हाथ पकड़े ही सो रहा था और स्निग्धा इन सबको देखकर मुस्करा रही थी। पर उसे ये डर सताए जा रहा था कि अब वो क्या करेगी !

उसने सबसे पहले निकुन का लैपटॉप ऑन किया और अपना सीवी बनाकर अपने कई पुराने दोस्तों को भेज दिया। उसे उम्मीद थी कि शायद कोई तो उसकी मदद कर ही देगा।

जिंदगी में एक ऐसा मोड़ जरूर आता हैं जब इंसान खुद से लड़ता है और वही वक़्त निकुन और स्निग्धा के जीवन मे आया हुआ था। बस इस समय का यह फायदा हुआ कि उन दोनों के बीच जो खाई पिछले कुछ सालों में पनपी थी वह पटने लगी और उन दोनों का प्यार फिर से शादी के पहले जैसा होने लगा। वो प्यार ही था जो उन दोनों फ़र्द को इस मुश्किल वक़्त में संभाले हुए था।

एक महीने तक दोनों लोगो को कोई ऑफर नहीं आया था और अब उनके लिए खर्च निकालना मुश्किल हो गया था। उन्हें अब अपने बेटे शिव्य की पढ़ाई की फिक्र भी होने लगी थी। वो उसे अपनी तरह अच्छे स्कूल में दाखिला दिलवाना चाहते थे ताकि वो भी एक अच्छा इंसान बन सके। एक नामी स्कूल में उन्होंने जब शुल्क की बात की तो उनके होश उड़ से गये। एक प्री नर्सरी के बच्चे की फीस 1,50,000 ₹ कोई मजाक बात नहीं थे। उनके ये फीस कुछ भी नहीं होती अगर निकुन अपनी जॉब कर रहा होता।

ये हमारे भारतीय शिक्षा व्यवस्था की एक बड़ी कमी है जहां एक मधयम वर्गीय परिवार को अच्छी शिक्षा दिलवाने के लिए 10 बार सोचना पड़ता है। वो दोनों घर आकर भय चिंतित थे और तभी न्यूज़ में उन्होंने और देशों की सरकारी शिक्षा व्यवस्था के बारे मे सुना और निकुन सरकार को गालियां देने लगा।

स्निग्धा एक समझदार महिला थी, वह बोली:- सरकार को क्यों गाली देते हो सरकार को हम ही चुनते हैं। पहले की सरकार थोड़ा बहुत काम करती थी लेकिन अब तो सब तरफ निजीकरण की भेड़चाल चली जा रही है। हम लोग धर्म और अपनी जाति के व्यक्ति को देखते हुए वोट देते हैं बल्कि ये भी नहीं सोचते हैं कि वो कितना पढ़ा लिखा है ? उसके घर की महिलाओं की क्या स्थिति है और वो पिछडो और दलितों के बारे में क्या सोचता है ? (थोड़ा गुस्से से) बस हमें तो न्यूज़ में यह दिखता है कि जेएनयू वाले देश को बर्बाद किये जा रहे हैं।

निकुन उसकी बुद्धिजीविता पर मुग्ध होते हुए बोला:- अरे इतना गुस्सा क्या होना, थोड़ा शांति रखो। चलो तुम आज आराम करो। आज खाना मैं बनाऊँगा।

जब दो महीने निकल गए और कोई ऑफर नही आया तो फिर शिव्य का दाखिला विजयबाल विद्या मंदिर में कर दिया। इस स्कूल का नाम ही लम्बा था पढ़ाई में जीरो बटे सन्नाटा था। स्निग्धा बहुत खिन्न थी उसका इकलौता लड़का एक अजीब से स्कूल में पढ़ रहा था।

जब वक़्त बस एक तरह से अति बुरी स्थिति में आने ही वाला था तब ही स्निग्धा के एक पुराने दोस्त नितार्थ का फ़ोन आया।

नितार्थ:- हैलो , स्निग्धा कैसी हो ?

स्निग्धा :- मैं ठीक हूं , तुम बताओ।

नितार्थ:- वो मुझे तुम्हारा सीवी मिला था, क्या हुआ तुम तो जॉब नहीं करना चाहती थी ?

स्निग्धा:- वो थोड़ा कुछ प्रोब्लम हो गयी है तो बस मुझे चाहिए थी, क्या तुम्हारे पास कोई ऑफर है ?

नितार्थ:- हाँ , मेरे स्टार्टअप में एक सॉफ्टवेयर डेवेलपर की जरुरत है, तुम्हें में अच्छे से जानता भी हूं तो मुझे कोई दिक्कत भी नहीं होगी।

स्निग्धा ये सब सुनकर बहुत खुश हुई। वो बोली:- सही है कब से जॉइन करू मैं ?

नितार्थ:- अगले महीने 1 तारीख से। मैं तुम्हे बस 4 लाख का पैकेज दे सकता हूं अभी।

स्निग्धा:- हाँ, ठीक है कोई दिक्कत नहीं है। ठीक है मिलते है फिर 1 को, तुम मुझे पता भेज देना।

स्निग्धा ये सब सुनकर सोच रही थी कि अब कोई दिक्कत नहीं होगी। अब सब सही हो जाएगा बस निकुन का भी कहीं सेटलमेंट कर दूँगी और शिव्य भी अगले सेसन से अच्छे स्कूल मे चला जायेगा। वो इन सब बातों को लेकर मन ही मन मुस्करा ही रही थी कि नितार्थ का टेक्स्ट मैसेज आता है।

"ऑफिस का पता - एन एस टेक्नो 12/23 सेक्टर-23 ,उद्योग नगर, गुरुग्राम।

तुम्हें काम देने में मुझे उतनी ही खुशी है जितनी तुम्हे काम मिलने की। बस मैं तुम्हें अपनी आंखों के सामने देखना चाहता हूँ। बाय ।"

स्निग्धा इस मैसेज को कुछ समझ नहीं पाई। पर थोड़ी ही देर में वो समझ गयी कि शायद नितार्थ अब भी मेरे पीछे पड़ा है जो 12 साल पहले था। स्निग्धा को लगा कि शायद इतने साल में वो सब भूल गया होगा लेकिन यहाँ पर वो गलत थी। वो सोच रही थी उसे समझा के सब ठीक कर दूँगी क्योंकि वो ये जॉब नहीं छोड़ सकती थी। उसे ये जॉब चाहिए ही चाहिए थी।

उसने जॉब की खबर निकुन को सुनाई और वो बहुत खुश हुआ लेकिन वो मन मे ग्लानि लिये हुए था कि मेरी वजह से स्निग्धा को इतनी तकलीफ हो रही है और उसे जॉब भी करनी पड़ रही है।

1 तारीक को स्निग्धा नितार्थ के ऑफिस जाती है। नितार्थ उसका अप्रत्याशित स्वागत करता है। स्निग्धा को सब बहुत अटपटा लगता है। नितार्थ उससे हाथ मिलाता है और एक अजीब सी मुस्कान भरता है। स्निग्धा के लिए उसने नया केबिन बनवाया था। पूरे ऑफिस को ये बात नहीं समझ आयी और स्निग्धा को भी।

नितार्थ उसे उसके केबिन में ले जाता है और उसकी चेयर खुद आगे करता है। ऐसा लग ही नहीं रहा था कि नितार्थ सीईओ है और स्निग्धा एक मामूली इंजीनियर। पहले ही दिन से आफिस में बाते चालू हो गयी। स्निग्धा को कोई काम भी नहीं दिया था बस उसका नया कंप्यूटर सेटअप रखा जा रहा था। नितार्थ उसके केबिन में आया और बोला:- कोई दिक्कत तो नहीं।

स्निग्धा ( हल्के से मुस्कराकर):- दिक्कत तो तब होगी जब कोई काम होगी जब कोई काम होगा , यहाँ क्या मुझे खाली बैठने की सैलरी दोगे।

नितार्थ:- मैं तो उसमें भी खुश हूं।

स्निग्धा क्षेप गयी और अब वह बहुत घबराने लगी थी। वो सोचने लगी कि कहीं मेरा शक सही तो नहीं है। ये मुझे अब भी प्यार तो नहीं करता है।

स्निग्धा थोड़ी देर सोचती रही फिर उसके बाद रोहित (जो कंप्यूटर ऑपरेटर था) बोला मैम सेटअप स्टार्ट हो गया है। स्निग्धा ने थैंक्यू बोल कर उसे जाने को बोला।

स्निग्धा ने जब सेटअप पर कंपनी की डिटेल्स देखी तो उसके होश उड़ गए। एन एस टेक्नो का मतलब नित-स्निग्ध टेक्नो था। अब उसका शक पूरी तरह से सच मे तब्दील हो गया। अब वो अपने आप को कोस रही थी कि उसने ये आफर स्वीकार ही क्यों किया ?

वो तुरन्त नितार्थ के केबिन में गयी। जब वो कॉरिडोर से जा रही थी तो सारे कर्मचारी खड़े हो गए थे। लेकिन इस वक़्त वो इन सब बातों को नजरअंदाज करना चाह रही थी।

केबिन में घुसते ही वो बोली:- नितार्थ ये सब क्या है ?

नितार्थ इस सवाल के लिए तैयार था और बोला:- ये वही जो पिछले 15 सालों से मेरे मन मे था। तुम भले ही 12 साल पहले मुझसे दूर हो गयी थी लेकिन तुम्हारा चेहरा मेरे दिल मे आज भी बस्ता है। तुम्हारे साथ गुजारा हर एक पल जन्नत की तरह मालूम होता है मुझे और तुम ही मेरा मुकाम हो। ये 100 करोड़ की कंपनी तुम्हारे ऊपर कुर्बान है।

स्निग्धा समझ रही थी कि ये समझने वाला नही है। वो बोली:- तुम इतना जो समझ रहे हो वो कभी नहीं हो सकता। और मैं ये जॉब छोड़ रही हूं।

स्निग्धा ऑफिस से बहुत गुस्से में निकली और घर आई तो निकुन बस बैठा हुआ था। बोला :- अरे तुम बड़ी जल्दी आ गयी और इतनी परेशान क्यों हो ?

स्निग्धा अपने चश्म में अश्क़ भरे हुए सारी बात बताती है। निकुन को बहुत तेज गुस्सा आता है पर वो इतना लाचार महसूस करता है कि सिवाय उठकर जाने के कुछ नहीं कर पाता है। आज निकुन अपने को बेहद कमजोर महसूस करता है और शादी के पहली बार शराब पीता है, स्निग्धा भी उसे नहीं रोकती है।

अगले 6 महीने तक दोनों को कोई जॉब नहीं मिली और फिर दोनों लोगों को उधार देने वाला भी कोई भी नहीं बचा था। निकुन सोच रहा था कोई छोटी सी जॉब ही मिले। स्निग्धा फिर सब नितार्थ के पास जाने को सोच रही थी। उसे अपनी भूख से ज्यादा शिव्य की पढ़ाई की चिंता थी और वो हर हाल में उसका दाखिल अच्छे स्कूल में कराना चाहती थी।

उसने निकुन से इस बारे में बात करना चाह रही थी। पर उसे डर था कि वह गुस्सा न हो।

निकुन के पास आकर वह बैठी और बोली:- निकुन हम कब तक लोगों का उधार लेते रहेंगे ? मैं नितार्थ के पास काम करने के लिए सोच रही हूं आखिर शिव्य का भी तो भविष्य हमे ही देखना है!

निकुन:- लेकिन उसके इरादे सही नहीं है और मैं अपनी गलती की वजह से तुम्हे खतरे में कैसे डाल दूं ?

स्निग्धा:- तुम उसकी चिंता मत करो मैं वो संभाल लुंगी। थोड़े दिन दिक्कत जरूर होगी लेकिन आगे उसे समझा के सारा मामला सही कर दूँगी।

निकुन बेमन से हामी भरता है।

स्निग्धा नितार्थ को कॉल करती है। निकुन को इस कॉल का इंतजार 6 महीनों से था क्योंकि निकुन और स्निग्धा को जॉब न मिलने का कारण नितार्थ ही था उसने स्निग्धा और निकुन का गलत कैरेक्टर रयूमर फैला दिया था जिससे किसी ने उसका सीवी एक्सेप्ट नहीं की थी।

नितार्थ कॉल का जवाब देते हुए:- हाय, कैसी हो स्निग्धा ?

स्निग्धा:- मैं ठीक हूँ, क्या तुम्हारे यहाँ पोस्ट खाली है ?

नितार्थ( मुसकराकर):- हाँ, बिल्कुल

स्निग्धा:- तो क्या मैं जॉइन कर सकती हो ?

नितार्थ:- हाँ, लेकिन इस बार पहले जैसे नही है। तुम्हें बांड साइन करना होगा।

स्निग्धा( भौहे चढ़ाकर):- कैसा बांड ?

नितार्थ:- यही कि तुम 20 महीने तक जॉब नहीं छोड़ सकती हो।

स्निग्धा इन सब शर्तो को मानने के लिए तैयार थी। उसने हां में जवाब दिया। स्निग्धा नितार्थ के गलत इरादों से वाकिफ नही थी।

स्निग्धा ने जॉब जॉइन की तो बांड साइन के अलावा कुछ भी अजीब नहीं था। उसे नया केबिन नही मिला था जिससे वो बहुत खुश थी।

पहले 6 महीने सब सही चला, शिव्य का एडमिशन भी अच्छे स्कूल मे हो गया था। लेकिन नितार्थ ने निकुन की जॉब नहीं लगने दी और निकुन भी इसे अपनी बुरी किस्मत समझ रहा था। अब उसने स्निग्धा की जगह ले ली थी अब वो स्निग्धा का इंतजार करता उसके लिए खाना भी बनाता था।

स्निग्धा अब नितार्थ के साथ खुल गयी थी और पुराने दिन याद करते हुए गप्पे लड़ाना चालू हो गया था। अब लेट नाईट पार्टीज में वो निकुन को भूल गयी थी। निकुन उससे कुछ नही पा रहा था क्योंकि वो उस पर भरोसा करता था।

स्निग्धा, नितार्थ के साथ 18-18 घण्टे बिताने लगी।

एक दिन जब पहली बार अपनी जिंदगी में शराब पीकर घर आई थी तो निकुन बहुत परेशान हुआ। सुबह जब निकुन स्निग्धा के लिए काफी लेकर गया तो स्निग्धा शर्म के मारे पानी पानी हुए जा रही थी।वो निकुन से आंखे नहीं मिला पा रही थी। वो सोच रही थी" कि ये कैसा वक़्त है कि मैं पूरी तरह निकुन की जगह ले चुकी हूं। आज मैं शराब पी रही हूं और निकुन घर देख रहा है"।

निकुन उसके माथे को चूमते हुए गुड मॉर्निंग बोलता है।

स्निग्धा:- कल के सॉरी निकुन, वो कल रात गलती हो गयी।

निकुन:- कोई बात नही हो जाता है, ऑफिस लाइफ की यही कहानी है। मैं करता था तो तुम चिल्लाती थी।

स्निग्धा क्षेप गयी और बोली :- अब तुम ज्यादा न बोलो।

निकुन बोला चलो आज कहीं चलते हैं , ठीक है ?

स्निग्धा खुशी से हाँ मैं सिर हिलाती है और शिव्य को उठाती है।

पूरा संडे घूमने के बाद स्निग्धा को बहुत अच्छा लगता है क्योंकि वह परिवार के साथ बहुत कम समय बिता पाती थी। लेकिन जो इंसान सबसे ज्यादा खुश था वो निकुन था। उसे ये नहीं लग रहा था कि स्निग्धा जॉब कर रही है बल्कि वही पुराण समय उसे महसूस हो रहा था।

अगले दिन जो हुआ उसने निकुन और स्निग्धा की जिंदगी बदल दी। स्निग्धा को एक कॉन्फ्रेंस के लिए हैदराबाद जाना पड़ा और चार दिन के लिए वो बाहर थी। निकुन को इससे कोई प्रोब्लम नहीं थी।

स्निग्धा जब कॉन्फ्रेंस के बाद नितार्थ के साथ थी तो वो बार मे काफी देर तक बैठे रहे और दोनों ही लोग शराब के नशे में मदहोश थे। नितार्थ इस वक़्त का इंतजार 1 साल से कर रहा था और कहें तो पिछले 16 सालों से। होटल पहुंच कर स्निग्धा होश में नहीं थी और नितार्थ उसके बालो में हाथ फिराये जा रहा था। ये हरकतें स्निग्धा को अच्छी लग रही थी । वो नहीं समझ पा रही थी क्या हो रहा है और बस नितार्थ का साथ दिए जा रही थी। जब क़मर आसमान में पूरे उफान पर था तो नितार्थ का हाथ स्निग्धा की कमर मे था और स्निग्धा के होंठ खुद ब खुद नितार्थ के होठों को छू गए। पूरी रात निथार्त और स्निग्धा एक दूसरे के आलिंगन में थे।

अगली सुबह स्निग्धा के लिए एक तूफान सी थी वो समझ नहीं पा रही थी कि उससे इतनी बड़ी भूल कैसे हो गयी ! वो खुद को कोसने के अलावा कुछ नहीं कर सकती थी। उसके पास में नितार्थ निर्वस्त्र सोया हुआ था। ये सारी चीजें स्निग्धा को हिला चुकी थी। जब नितार्थ उठा तो वो उसके माथे को चूम कर बोला:- गुड मॉर्निंग डिअर !

स्निग्धा अपना सिर अपने हाथों में छुपाते हुए बस रोये जा रही थी। वो बोली:- तुमने ऐसा क्यों किया नितार्थ, आखिर मैंने तुम्हारा क्या बिगाड़ा था ?

नितार्थ:- मैं तुमसे निकुन से भी ज्यादा प्यार करता हूं, आखिर उसने तुम्हें दिया ही क्या है, बस जिंदगी भर दिक्कतें और दुख। तुम मेरे साथ शादी कर लो मैं तुम्हें जन्नत से भी ज्यादा सुख दूँगा।

स्निग्धा, नितार्थ के ऊपर हाथ उठाती है और बोलती है, तुम पागल हो, मेरी ही गलती है कि मैंने तुम्हारे ऊपर भरोसा किया।

नितार्थ बोला अब इससे कोई फायदा नहीं ये वीडियो तुम्हे बदनाम भी करेगा और तुमसे तुम्हारा शिव्य भी छीन लेगा अब मेरे अलावा तुम्हारे पास कोई रास्ता नही है।

वीडियो देखकर स्निग्धा के पैरों से जमीन खिसक गई उसे समझ नही आ रहा था कि वो क्या बोले और क्या करे ? वो नितार्थ से हाथ जोड़कर बोली कि तुम प्लीज् ऐसा मत करो मैं बर्बाद तो हो चुकी हूं अब तुम मेरी इज़्ज़त मत उछालो।

नितार्थ सिगरेट का कश लेते हुए बोला:- मुझे तुम चाहिए, कैसे ये नहीं पता।

ये कॉरपोरेट सेक्टर की एक बड़ी बात है जहाँ प्रमोशन और जॉब के लिए महिलाओं का यौन उत्पीड़न होता रहता है। महिलाएं इस बात को अपने घरवालों के सामने कह नहीं पाती है और हमेशा शिकार होती रहती है। अपनी इज़्ज़त बचाए रखने के लिए वो ऐसा करती है। विडम्बना ये है ये वो लडकियाँ है जो बड़े प्रतिष्ठित संस्थाओं से पढ़ाई करती और इन सामाजिक मुद्दों में पीछे हटती जाती हैं। भारत मे इंजिनीरिंग और मैनेजमेंट के छात्र समाजिक मुद्दों पर बात करना पसंद नहीं करते हैं, उन्हें शायद ही ये मतलब रहता है कि देश की सरकार ने क्या किया और क्या उनके लिए इससे कुछ नुकसान है !

ये बुरी हरकतें शायद कम भी हो अगर आवाजें उठायी जाए। किसी ने सही कहा है कि "दुनिया इसलिए बुरी नहीं है कि यह बुरे लोग ज्यादा है बल्कि बुरी इसलिए है क्योंकि अच्छे लोग बुराई के खिलाफ आवाज नहीं उठाते"।

स्निग्धा अपना सामान लेकर घर वापस जाती है। निकुन देखकर खुश होता है। लेकिन स्निग्धा कैसे बताती कि वो अब इज़्ज़त खो चुकी है।

शाम तक वो शांत रहती है और अपने कमरे में आंख बंद करे उस गलती पर बार-बार पछताती हैं । निकुन जब शाम को उसके पास जाता है तो वो रोने लगती है। निकुन उसकी हालत देखकर परेशान होता है और उससे पूछता है क्या हुआ ?

स्निग्धा उसे सब बताती है। सारी बातें सुनकर निकुन भी स्निग्धा की तरह हक्का-बक्का रह जाता है। निकुन शान्त सा बैठा रहता है। उस रात वो घर नही आता हैं। स्निग्धा, शिव्य को रात भर थपकी देते देते अपनी जिंदगी के पिछले 5 सालों को याद करती है।

अगली सुबह ये न्यूज़ आती है कि एन एस टेक्नो के मालिक नितार्थ सिंह की हत्या निकुन दुबे ने कर दी है। ये न्यूज़ देखते ही स्निग्धा की सांस उखड़ जाती है। वो सांस लेने की कोशिश तो करती है पर ऐसा लगता है जैसे वातावरण में वायु ही न हो, पत्तो ने हिलना बन्द कर दिया हो और समुद्र में कोई लहर न रह गयी हो लेकिन ये उसके लिये बुरी खबर नहीं थी शायद इससे बुरी खबर स्निग्धा की दोस्त मनिका उसे देती है।

वो कहती है:- स्निग्धा तेरा वीडियो वायरल हो गया है, तुझे कंपनी के बोर्ड ने निकाल भी दिया है।

स्निग्धा के हाथ से फ़ोन छूट के गिर जाता है और वो एक मूर्ति की तरह बैठी रहती है। उसे इस बात का गम नहीं था कि उसकी नौकरी चली गयी पर दुख इस बात का था कि उसका वीडियो लीक हो गया। नितार्थ तो मर गया लेकिन उसने स्निग्धा की जिंदगी को भी जीने लायक नहीं रखा था। और स्निग्धा के कफन की आखिरी कील शिव्य के स्कूल से आई जिसमें उसे स्कूल से निकाल दिया गया था।

शिव्य, जिसका इस पूरे प्रकरण में नाम मात्र का रोल था उसकी जिंदगी एक बहुत बुरी दिशा पर आकर खड़ी हो गयी थी। वो कुछ समझ तो नहीं पा रहा था पर आगे वो इन सब चीजों को अच्छे से अपने जीवन की परकाष्ठा पर उतारने वाला था। वो सिर्फ 6 साल का था इसलिए अभी तो उसके लिए ये सब एक पहेली से ही था।

अगले 6 महीने में निकुन को फाँसी की सजा हो गयी और स्निग्धा हड्डियों के ढांचे में तब्दील हो गयी। स्निग्धा की कामवाली बाई शिव्य को तो सम्भाल सकती थी लेकिन स्निग्धा की हालत को सुधराना उसके वश के बाहर था।

शिव्य को बस ये पता था कि पापा कहीं गए हुए हैं, मम्मी बीमार है और ज्योति आंटी ही सब कुछ है। शिव्य के साथ कोई खेलता नहीं था क्योंकि वो अब एक बदनाम घर का बेटा था। जब शिव्य का सातवां जन्मदिन था तो वो अपनी मम्मी को जगाने गया लेकिन स्निग्धा नहीं जागी क्योंकि वो अब इस संसार की बाधाओं से दूर अपने वक़्त को भुला के एक नई दुनिया मे जा चुकी थी।

एक वक्त था जब स्निग्धा की दुनिया था शिव्य और आज उस दुनिया को छोड़कर स्निग्धा जा चुकी थी।


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