ट्रेन की पटरी
ट्रेन की पटरी
ट्रेन सिटी मार रही थी।वह अपनी माँ को बार-बार बोल रहा था , माँ जल्दी चलो, ट्रेन छूट जाएगी। मैंंनेे समान ट्रैन मेंं रख दिया है।आखिरकार ,ट्रेन धीरे-धीरे करके स्टेशन से सरकने लगी।उसकी उसकी माँ ने मानो हड़ताल ही कर दिया था। वह ट्रेन पर चढ़ने का नाम ही नहीं ले रही थी। स्टेशन पर बैठ गई थी। ऐसा लग रहा था कि ट्रेन रावण है और उसकी माँ के पैर अंगद के हैं, जो कि स्टेशन पर जम गए थे, और हिलने का नाम ही नहीं ले रहे थे। मरता क्या न करता, उसके बेटे ने आखिर में जो भी सामान ट्रेन में पड़ा हुआ था, उन सारे सामान को लेकर नीचे आ गया।
वह अपनी माँ को शहर ले जाकर शहर घुमाना चाह रहा था। अपने प्रयास में असफल रहा। वह कभी जाती हुई ट्रेन को देखता ,कभी अपनी माँ को। अंत में उसने माँ से पूछा
"आखिर आप ट्रेन पर चढ़ी क्यों नहीं।"
माँ ने कहा
इतनी बड़ी ट्रेन है, और इतनी छोटी पटरी ।इस छोटी सी पटरी पर इतनी बड़ी ट्रेन जाएगी कैसे ? यह कहीं न कहीं जरूर पटरी से उतर जाएगी।"
उसके मन में जितना भी गुस्सा भरा था ,वह हँसी में परिवर्तित हो गया। उसको अपनी माँ की दुविधा का कारण समझ में आ गया था।