मानव समुद्र
मानव समुद्र
“जिधर देखो भीड़ नजर आती है क्या करूँ कहाँ जाऊँ समझ नही आता “विचारों के झंझावत से परेशान हो कर निकुन्ज को खुद से ही बड़बड़ाते देख मैने कहा “इतना परेशान होने की जरूरत नहीं है जब लोग अपना पैतृक व्यवसाय छोड़ कर मैकाले की शिक्षा पद्दति से ज्ञानार्जन करके निश्चित दिशा की ओर दौड़ेगें तो लोगों की भीड़ मानव समुद्र की तरह ही नजर आयेगी। दिमाग से चिन्ता के बादल हटाओ और आशा की किरण से अपने अन्दर की योग्यता को देखो। जिस काम में तुम खुद को बेहतर समझते हो वह रोज़गार अपने लिये चुनो जिसमें प्रतिस्पर्धा कम से कम लोगों से हो देखना सफलता अवश्य ही तुम्हारे कदम चूमेगी। ”
तभी “माँ “ की आवाज़ से मैं वर्तमान में लौट आई। आज बेटे का चमकता चेहरा उसकी सफलता की कहानी कह रहा था ।