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Jahnavi Suman

Romance Tragedy

1.0  

Jahnavi Suman

Romance Tragedy

एजी ओजी

एजी ओजी

6 mins
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कर्नल अजीत कितने दिनों से किसी से बात करने के लिए तरस गए थे, उन्हें फिर अपनी पत्नी का ख्याल आया, आख़िर एक वही तो थी जो उनकी हर बात सुना करती थी।

प्रिय वी,

कहाँ हो ? कैसी हो ? प्लीज़ बताओ ना तुम्हारे विषय में कोई समाचार नहीं मिला।

यूँ तो हर पल हर घड़ी तुम्हारी यादों से मुक्त नहीं हो पाता हूँ परन्तु आज तो तुम्हारी इतनी याद आ रही है कि मुझसे रहा नहीं जा रहा। ऐसा लग रहा है बस कहीं से तुम्हारी एक झलक ही दिख जाए शायद कुछ पल को चैन मिल जाये। टेलेविज़न देख रहा था, प्रत्येक चेनल पर एक ही टॉपिक है ‘लव इन दी एयर’ ‘वेलेंटाइंस डे ‘ आ रहा है।

निगोड़े क्यों किसी के जख्मों पर नमक छिड़कते हैं। जानते नहीं मेरी ‘वी’ के बिना मेरा कैसा ‘वेलेंटाइंस डे।‘ सोच रहा हूँ, आज तो सब बातें लिख ही दूँगा तुम्हें।

शायद मन हल्का हो जाएगा।

'वी' तुम्हे इतनी जल्दी क्यों थी जाने की ? भला ऐसे कोई किसी को बीच रास्ते छोड़ कर जाता है क्या ? मैं भी कितना निष्ठुर हूँ, पता नहीं तुम्हारे बिना कैसे जी पा रहा हूँ, शायद तुम्हारे चिनकू मिंकू के लिए, जिनका वो रुदन जो तुम्हारे जाने के बाद फूटा था, आज भी कानों में शोर कर रहा है।

हँसती गुनगुनाती ज़िन्दगी चल रही थी ,हमारी-तुम्हारी।

एक पल के लिए भी कभी मन में ये ख्याल न आया था, कि तुम इस तरह चली जाओगी। मैं तो बस यही सोचा करता था, मेरे जाने के बाद तुम कैसे जी पाओगी। मुझे तो दो बार तुम मौत की मुहँ से वापिस खींच लाई थी मगर मुझे तुमने कुछ करने का अवसर ही नहीं दिया। रात को मैं सोता ही रह गया, तुम्हारे आँचल में औऱ न जाने तुम कब चली गईं।

ऐसा लग रहा था, मैं तुम्हारे बिना पागल हो जाऊँगा, दीवारों से सिर फोड़ लूंगा, मगर तुम्हारे चिनकू, मिंकू का चेहरा सामने आ गया। दादी की विदाई में कैसे बिलख रहे हैं क्या इतनी जल्दी दूसरी विदाई देख पायेगें ? बस उन्ही की खातिर खुद को संभाल लिया।

सब से आँखे चुरा चुरा कर रोता रहा। 'वी' तुम्हारे जाने के बाद हमारा बैडरूम भी छीन गया और बैड भी।  बेटे बहू कहने लगे,आप इतने बड़े कमरे में अकेले सो कर क्या करोगे और इतना बड़ा बैड भी आपके किस काम का। आप के लिए सिंगल बेड स्टोररूम में लगा देते हैं, बगीचा भी पास है बिना ए सी के ठंडा रहेगा।

तुम्हारे जाने के बाद मैं शक्तिहीन सा हो गया हूँ, किसी बात का विरोध नहीं कर पाता हूँ। हाँ, वो कमरा छोड़ने से पहले हमारी तुम्हारी वो तस्वीर उठा लाया हूँ, जो हमने जुहू चौपाटी, मुम्बई मैं खिंचवाई थी।

क्या गज़ब की बारिश हुई थी उस दिन, कैसा रेत में फिसल कर मैं समुन्द्र में डूब ही जाता, पर कमाल की सूझ बूझ दिखाई तुमने। ऐसा लगता था मौत के मुँह से वापिस लौट आया हूँ।

'वी' तुम्हारे जाने के बाद बेटे और बहू का मुखौटा उतरने लगा है कोई और ही चेहरा दिखाई पड़ रहा है, दोनों का तुम्हारा लाडला निखिल बैंक की नौकरी छोड़ कर नचनिया बन गया है। बेटे बहू दोनों विवाह और जन्मदिन की पार्टियों में नाचते फिरते हैं।

घर पर भी कल एक पार्टी थी। चिनकू बता रहा था कि दादाजी आज ‘रोज़ डे है। यानी गुलाब का दिन। इस दिन प्रेमी एक दूसरे को प्यार से लाल गुलाब देते हैं।

मेरे कमरे का यानी स्टोर रूम को तो निखिल ने बाहर से ताला लगा दिया था। मुझसे कह रहा था ‘पापा खिड़की से ताँक झाँक मत करना, हाई प्रोफाइल लोग आ रहे हैं। आप ताँक झाँक करेगे तो बुरा इम्प्रेशन पड़ेगा।’

मुझ से बात चीत करने वाला यहाँ कोई नहीं है, बस तुम्हारी तस्वीर से ही यदा कदा बतिया लेता हूँ। ‘वी’ तुम्हारे हाथ का बनाया खाना बहुत याद आता है। तुम्हारे जाने के बाद कभी न पेट भर खाना खाया और न जी भर कर।

मटर पुलाव, गाजर के हलुवे का स्वाद तो तुम अपने साथ ही ले गईं। पिछले सप्ताह तेज़ बुखार चढ़ गया था,उफ़ कितना याद आईं तुम। बार बार थर्मामीटर लेकर आ जाती थी बुखार नीचे न आता तो क्या क्या करती थी, कभी साई बाबा के मंदिर से लाई भभूति लगाती तो कभी भगवान के सामने आँचल फैलाकर प्रार्थना करती।

इस बार पाँच दिन तक बुखार नीचे नहीं आया, निखिल से कहा डॉक्टर से बात करें, लेकिन बेटे बहू दोनों खीजने लगे। तुम्हारे शहज़ादे निखिल बोले, ‘आप भी कमाल करते हैं ,पापा वायरल है ,एक सप्ताह तो लगेगा ही उतरने में।’

कल ‘चॉकलेट डे ‘ है।

प्रेमी एक दूसरे को चॉकलेट देकर अपने प्यार को ज़ाहिर करेगें। तुम्हारे चिनकू मिंकू सब खबर देते रहते हैं। जब तुम्हारे बेटा-बहू घर पर नहीं होते तब दौड़ कर मेरे कमरे में आ जाते हैं, अपने माता -पिता से डरते हैं शायद।

एक दिन बता रहे थे, दादाजी आज ,,’टैडी बेयर डे “ है। प्रेमी इस दिन रूठे प्रेमी को मनाने के लिए टैडी बेयर का साफ्ट टॉय देते हैं। ऐसा माना जाता है कि, टैडी बेयर दो दिलों के बीच टूटे रिश्ते को जोड़ देता है।

हमारे ज़माने में ये सब कहाँ होता था। मैं तो तुम पर अपना प्यार कभी जाहिर ही नहीं कर पाया। मुझे तो यह लगता था कि तुम सब समझती हो, बताने कि क्या आवश्यकता है। लेकिन फरवरी का महीना शुरू होते ही, आज कल जो हवाओं में भी प्रेम की महक तैरने लगती है ,तो लगता है, हमने तो सारा समय घर गृहस्थी की देखभाल में ही लगा दिया। कभी एक दूसरे को इतना समय नहीं दिया जितना आज कल के प्रेमी जोड़े देते हैं।

यह कहना कठिन है, हम सही थे, या आज की पीढ़ी। ये तो आने वाला समय फ़ैसला करेगा कि इस के बाद आने वाली पीढ़ी पर इसका क्या प्रभाव पड़ता है।

‘वी ‘ तुम्हें मेरी हैंड राइटिंग समझ तो आ रही है न ? कुछ खराब हो गई है, नहीं, नहीं बूढ़ा नहीं हुआ हूँ। तुम्हें एक बार फिर से छू लेने को हाथ फड़फड़ा रहे हैं।

खैर तुम तो मन की भाषा भी पढ़ लेती हो।

याद है गर्मियों में जब बत्ती गुल हो जाती थी, तब हम अंताक्षरी खेल कर समय  बिताते थे। अब बहुत याद आते हैं, वो दिन। कभी-कभी लेटे-लेटे तुम्हारे संग मन ही मन अंताक्षरी खेलने लगता हूँ। मेरी अंताक्षरी अक्सर ‘त ‘अक्षर पर आकर खत्म हो जाती है, इसलिए नहीं कि मुझे ‘त ‘ अक्षर से गाना नहीं आता बल्कि इसलिए कि मुझे ‘त’ अक्षर से हमेशा ये गाना याद आता है, तेरे बिना ज़िन्दगी से कोई शिकवा तो नहीं शिकवा नहीं। तेरे बिना ज़िन्दगी भी कोई ज़िन्दगी तो नहीं। ज़िन्दगी नहीं।

जब आगे ये लाइन गाता हूँ, “जी मैं आता है तेरे दामन मैं सर छुपा के हम रोते रहे, रोते रहे।‘

तो बस मैं तकिये में सर छिपा कर रो लेता हूँ।

कल हरिद्वार जाकर इस पत्र को गंगा मे बहा आऊँगा, सुना है वहीं से स्वर्ग का रास्ता जाता है। तुम भी तो इसी रास्ते स्वर्ग गई हो।

पत्र मिलते ही जवाब ज़रूर भेजना।

मैं वहीं खड़ा रहूँगा गंगा के तट पर।

तुम समझ गईं न मेरी ‘वी ‘,मेरी ‘वीना,’ मेरी वैलेंटाइन।

तुम्हारा सिर्फ़ तुम्हारा

जी, एजी, ओजी

अजीत।।


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