वड़वानल - 47
वड़वानल - 47
मुम्बई के जहाज़ों की ही भाँति नौसेना तल का वातावरण भी गरम हो रहा था। फोर्ट बैरेक्स में हमेशा की तरह साढ़े पाँच बजे ‘हैंड्स कॉल’ दिया गया। चाय से भरा हुआ एक बड़ा भगोना मेस के बाहर रख दिया गया।
‘‘प्लीज, चाय मत लेना। हम ‘तलवार’ के सैनिकों का साथ देंगे। उनके कन्धे से कन्धा मिलाकर स्वतन्त्रता के लिए लड़ेंगे।’’ फोर्ट बैरेक्स का लीडिंग टेलिग्राफिस्ट धरमपाल सिंह चाय के लिए आए हुए सैनिकों से विनती कर रहा था और सैनिक बिना चाय लिए दूर खड़े थे।
''Friends, nobody will go for fallin. We shall join the Talwar.'' धरमपाल चिल्लाकर कह रहा था।
सफ़ाई के लिए फॉलिन होने का बिगुल बजा मगर कोई भी बैरेक से बाहर निकला ही नहीं।
“What's wrong with these blackies?” फॉलिन के लिए आया गोरा चीफ जेम्स अपने आप से बुदबुदाया, और ‘तो तलवार का संक्रमण यहाँ तक पहुँच गया !’ सीमन डिवीजन के चीफ ने कहा।
चीफ जेम्स ने ऑफिसर ऑफ दि डे को रिपोर्ट की और ‘बेस’ के सैनिकों के विद्रोह में शामिल होने की खबर अंग्रेज़ अधिकारियों में फैल गई।
''I feel we should leave the base.'' हाल ही में हिन्दुस्तान आया स.लेफ्टिनेन्ट गोम्स बोला।
‘‘नहीं, हमें इन सैनिकों को शान्त करने की कोशिश करनी चाहिए। यह हमारा कर्तव्य है।’’ फर्स्ट लेफ्टिनेन्ट ले. कमाण्डर एलन ने उन्हें समझाया। ‘‘ले. खान तुम हिन्दुस्तानी हो। मेरा ख़याल है कि काले सैनिक तुम्हारी बात मानेंगे। तुम उन्हें समझाने की कोशिश क्यों नहीं करते ?’’ उसने विनती की।
‘‘मैं इसे अपना सम्मान समझता हूँ। मैं कोशिश करता हूँ।’’ खान ने जवाब दिया और वह हिन्दुस्तानी सैनिकों की बैरेक की ओर चल पड़ा।
खान की कोशिश नाकामयाब रही।
अगर हम यहाँ से बाहर नहीं निकले तो ये गोरे हमें बन्द कर देंगे इसलिए सैनिकों ने ‘बेस’ छोड़कर ‘तलवार’ पर जाने का निर्णय लिया।
कैसल बैरेक्स का कमांडिंग ऑफिसर कमांडर हिक्स रातभर जागता रहा। कल शाम को रियर एडमिरल रॉटरे ने ‘तलवार’ के विद्रोह की ख़बर दी थी और ‘तलवार’ ही के समान कैसेल बैरेक्स में भी कहीं कुछ हो न जाए इस बात के प्रति सावधानी बरतने को कहा था। पूरी रात वह हर घण्टे ‘बेस’ में घूम रहा था। एक–दो बार बैरेक्स के चक्कर भी लगाये, यह देखने के लिए कि कहीं कुछ आपत्तिजनक तो नहीं है, और चूँकि वैसा कुछ भी नज़र में नहीं आया इसलिए वह खुश था।
कैसेल बैरेक्स में कम ही, यानी तीन सौ सैनिक थे। उनकी एकता अभेद्य थी। जब किसी काम को करने की ठान लेते तो पूरी जिद से उसमें लग जाते। राममूर्ति उनका नेता था। अत्यन्त शान्त स्वभाव का और अचूक निर्णय लेने के लिए विख्यात। सुबह छह बजे फॉलिन के लिए पहुँचे सैनिकों को उसने इकट्ठा किया।
‘‘दोस्तो ! कल रात के समाचारों और आज के अखबारों से स्पष्ट हो गया है कि ‘तलवार’ के हमारे भाई–बन्धु स्वतन्त्रता के लिए विद्रोह का झण्डा लिये ज़िद से खड़े हैं। यह संघर्ष हम सबका है। यह समय ही ऐसा है कि हर सैनिक महत्त्वपूर्ण है। यदि हम एक हो गए तभी विजयश्री हमें वरमाला पहनायेगी, और यदि यह संघर्ष असफल हुआ तो अगले कई सालों तक हम इस अपमानास्पद, शर्मनाक जीवन की गर्त में पड़े रहेंगे। यही समय है - हमारे एकजुट होने का और अंग्रेज़ों के विरुद्ध खड़ा होने का। भले ही हम सिर्फ तीन सौ हों, मगर हममें से हर सैनिक दस–दस पर भारी पड़ेगा। मेरा ख़याल है कि हम सबको इस संघर्ष में शामिल हो जाना चाहिए।’’ राममूर्ति ने आह्वान किया।
राममूर्ति के आह्वान को ज़बर्दस्त प्रत्युत्तर मिला।
‘‘हम मोर्चा लेकर तलवार पर जाएँगे। जाते समय नारे लगाएँगे जिससे तमाम जनता को हमारे संघर्ष के कारणों का पता चलेगा।’’ गिल ने सुझाव दिया।
‘‘गिल की सुझाव उचित है। हम इसे मान्य करें।’’ राममूर्ति ने स्वीकृति दी और साथ ही सैनिकों ने भी।
‘‘दोस्तों ! याद रखो ! हम सैनिक हैं। सैनिक को अनुशासित होना ही चाहिए। उसका पहला कर्तव्य होता है रक्षा करना; इसलिए हमारा यह मोर्चा न होकर एक अनुशासित जुलूस होगा, पूरी तरह अहिंसात्मक। इसमें मारामारी, लूटपाट, आगजनी आदि के लिए कोई जगह नहीं होगी।’’ राममूर्ति ने सुझाव दिया।
सारे सैनिक अपनी–अपनी बैरेक के हिसाब से तीन–तीन की कतारों में फॉलिन हो गए। उस गड़बड़ी में भी कोई तिरंगा और चाँद–तारे वाला हरा झण्डा तैयार करके ले आया। ये झण्डे जुलूस के आगे फड़कने लगे।
''Platoons, right turn !''
''Quick march, dress up from right !''
जुलूस शुरू हो गया।
किसी ने नारा लगाया, ‘‘भारत माता की...’’
‘‘जय !’’ गड़गड़ाहट भरा प्रत्युत्तर मिला और फिर नारों की गूँज के बीच जुलूस आगे सरकने लगा।
सबेरे ही कैसेल बैरेक्स के कमांडिंग ऑफिसर के घर का फ़ोन बजा। हिक्स ने शीघ्रता से फ़ोन उठाया और बोला, 'Commander Hix speaking.'' उसकी आवाज़ में दहशत थी।
''Good morning, sir,'' कैसेल बैरेक्स के ऑफिसर ऑफ दि डे की आवाज़ में असहायता थी। ‘‘सर, आज सुबह की फॉलिन के लिए सैनिक आए ही नहीं।’’
''What? सैनिक आए नहीं तो तू क्या कर रहा था ?’’ गुस्से से हिक्स ने पूछा।
‘‘जब मैं देखने गया तो सैनिक मोर्चा लेकर ‘तलवार’ में जाने की तैयारी कर रहे थे...।’’
‘‘और तू देखता रहा ? You, fool ! रोको उन्हें, बाहर मत जाने दो !’’ हिक्स चीखा।
‘‘मैं कोशिश करता हूँ, सर, मगर...’’
''You must stop them. I am coming there...'' हिक्स ने कहा।
हिक्स अभी ‘बेस’ से आधा फर्लांग की दूरी पर ही था कि उसके कानों में नारों की आवाज़ पड़ी और वह समझ गया कि डोर उसके हाथ से निकल चुकी है। उसे एक बार तो ऐसा लगा कि वापस लौट जाए, मगर कर्तव्यदक्ष मन ने विरोध किया। वह मेन गेट के पास आया। मेन गेट के पहरेदारों ने उसे सैल्यूट तो मारा ही नहीं, बल्कि उस पर एक जलता हुआ कटाक्ष फेंका। वह पल भर को वहीं जम गया।
''Bastards, black coolies, पूछना चाहिए सालों को, समझते क्या हैं अपने आप को !’’ वह बुदबुदाया।
उसकी नज़र पहरेदारों के हाथों की बन्दूकों की ओर गई।
‘‘चिढे़ हुए इन सैनिकों ने यदि गोलियाँ दागीं तो...’’ उसके मन में विचार कौंध गया। सामने से आती हुई सैनिकों की लहर उसे दिखाई दी और 'O God, save me !' कहते हुए वह बायीं ओर की इमारत में शरण लेने के लिए भागा।
हिक्स की यह भागादौड़ी सैनिकों ने देखी, मगर उन्होंने उस पर ध्यान नहीं दिया, क्योंकि वे ‘तलवार’ पर पहुँचने की जल्दी में थे।
सैनिकों का यह जुलूस मेन गेट के पास पहुँचा। इन सैनिकों का उत्साह देखकर मेन गेट पर ड्यूटी कर रहे सैनिकों ने अपनी वेबिंग इक्विपमेंट्स उतार दीं और बन्दूकें लेकर वे जुलूस में शामिल हो गए।
‘‘यह जुलूस लोगों को डराने के लिए नहीं है, यह पूरी तरह अहिंसात्मक है। अगर तुम्हें जुलूस में शामिल होना है तो बन्दूकें रखकर आओ !’’ राममूर्ति ने कड़ाई से कहा।
सैनिकों ने बन्दूकें गार्ड रूम में रख दीं और वे जुलूस में शामिल हो गए।
सैनिकों का यह अनुशासित जुलूस मुम्बई के रास्ते पर आ गया।
‘‘हिन्दू–मुस्लिम एक हों !’’
‘‘भारत माता की जय !’’
‘‘वन्दे मातरम् !’’ इन नारों से पूरा वातावरण गूँज उठा। ये सैनिक मानो अंग्रेज़ी हुकूमत को मृत्युदण्ड पढ़कर सुना रहे थे। तिरंगे और चाँद–तारे वाले झण्डे के साथ–साथ हँसिया–हथौड़े वाला लाल झण्डा भी आ गया। आगे–आगे फड़कने वाले वे तीनों ध्वज मानो कह रहे थे, ‘‘एक हो जाओ, आज़ादी दूर नहीं !’’
मुम्बई के रास्ते पर यह जुलूस आगे सरकने लगा और अन्य जहाज़ों से ‘तलवार’ पर जाने वाले सैनिक भी जुलूस में शामिल हो गए। फोर्ट बैरेक्स की कुछ गाड़ियाँ भी सैनिकों के पीछे–पीछे चलने लगीं। मुम्बई की जनता ने स्वतन्त्रता प्राप्ति के लिए सैनिकों का इतना बड़ा जुलूस कभी नहीं देखा था। मुम्बई के इतिहास में यह एक अद्वितीय घटना थी। इस घटना के गवाह बनने के लिए लोग दरवाजों–खिड़कियों में, छतों पर, छज्जों पर, जहाँ जगह मिली वहाँ तो खड़े ही थे, पर पैदल फुटपाथ भी खचाखच भरे थे। आज नागरिकों को इन सैनिकों से डर नहीं लग रहा था, बल्कि उल्टे उनके चेहरों पर आश्चर्यमिश्रित प्रशंसा का भाव था। नागरिकों का यह ज़बर्दस्त समर्थन देखकर सैनिक और भी जोश से नारे लगा रहे थे और इन नारों में नागरिक भी फुर्ती से शामिल हो रहे थे। कुछ देर पश्चात् तो नागरिकों की एक बड़ी टुकड़ी ही सैनिकों के पीछे जुलूस में शामिल हो गई। सन् 1857 के विद्रोह के पश्चात् पहली बार नागरिक एवं सैनिक अंग्रेज़ी हुकूमत के ख़िलाफ एक हो गए थे।
कुछ सैनिक जुलूस से बाहर निकलकर अपनी अंग्रेज़ विरोधी भूमिका समझा रहे थे; उन पर किये जाने वाले अन्याय के बारे में बता रहे थे; दुकानदारों से समर्थन माँग रहे थे और इसके लिए अपनी दुकानें बन्द करने की विनती कर रहे थे। हिन्दुस्तानी दुकानदारों ने फ़ौरन अपनी दुकानें बन्द कर दीं, मगर विदेशी, खासकर अंग्रेज़ दुकानदारों ने अपनी दुकानें बन्द करने से इनकार तो किया ही, और पुलिस की धमकी भी देने लगे। सैनिक चिढ़ गए और उन्होंने मेयो, इवाज़, फ्रेजर, फॉवरलूबा इत्यादि विदेशी कम्पनियों की दुकानें सख़्ती से बन्द करवा दीं।
जुलूस आगे सरक रहा था। सब कुछ बड़ा शान्त और अनुशासित था, कहीं भी किसी तरह की गड़बड़ी नहीं थी। कोडॅक कम्पनी की दुकान बन्द करवाकर कुछ सैनिक वापस लौट रहे थे, तो चव्हाण ने दीवार से टिककर खड़े दो पुलिसवालों को देखा और वह पाटिल से बोला, ‘‘देख, देख वे गोरे सिपाही कैसे लावारिस कुत्तों जैसे दुम दबाये दयनीय चेहरे से खड़े हैं।’’ सुनने वाले सभी ठहाका मार कर हँस पड़े।
मुम्बई के एक सत्याग्रह का दृश्य चव्हाण की आँखों के सामने तैर गया। नि:शस्त्र सत्याग्रहियों पर टूट पड़े गोरे सिपाही...चल रहा लाठी मार... शान्ति से लाठियाँ खाने वाले सत्याग्रही... उसने अपना आपा खो दिया, वह ज़ोर से बोला, ‘‘आज हमें मौका मिला है, आज हम उन्हें दिखा दें कि जूतों की और वह भी नाल जड़े जूतों की, लातें कैसी लगती हैं; लाठियों के शरीर पर बल कैसे पड़ते हैं और कितने दिन वे बदन पर रहते हैं।’’
चव्हाण के इस आह्वान पर चव्हाण और पाटिल के साथ–साथ और पाँच–छह सैनिक उन गोरे सिपाहियों की ओर दौड़े। अब अपनी ख़ैर नहीं, यह जानकर वे सिपाही भागने लगे और बगलवाली इमारत में घुस गए। सैनिकों ने उन्हें खींचकर बाहर निकाला और रास्ते पर लाकर लात–घूँसे बरसाने शुरू कर दिये। राममूर्ति ने यह देखा और वह सिपाहियों को छुड़ाने के लिए भागा।
सैनिकों के मन में विदेशी लोगों, विदेशी चीज़ों और विदेशी इमारतों के बारे में इतनी नफ़रत उफ़न रही थी कि विदेशी शासनकर्ता और अन्य विदेशियों के बीच का फ़र्क भी वे भूल गए। जुलूस यू.एस.ए. लायब्रेरी के निकट आया। कुछ जोशीले सैनिकों ने अमेरिका का राष्ट्रीय ध्वज नीचे खींचा और उसे जला दिया।
तलवार तक पहुँचते–पहुँचते जुलूस में सैनिकों की संख्या दो हजार से भी ज्यादा हो चुकी थी। तलवार के सैनिकों ने जुलूस के सैनिकों का नारे लगाते हुए स्वागत किया। दत्त, मदन, दास, गुरु, खान – सभी आए हुए सैनिकों की ज़बर्दस्त संख्या देखकर भावविभोर हो गए।
‘‘ये सैनिक एक लक्ष्य से प्रेरित हुए हैं। यह एक शक्ति है। इसे उचित मोड़ देना चाहिए। अगर ये बेकाबू हो गए तो अनर्थ हो जाएगा !’’ खान ने अपने सहकारियों को सावधान किया।
‘‘अभी बात करते हुए कैसल बैरेक्स के राममूर्ति ने कहा कि कुछ सैनिकों ने दो गोरे सिपाहियों को मारा और अमेरिका का झण्डा जला दिया, ये दोनों घटनाएँ वाकई में खेदजनक हैं,’’ गुरु ने कहा।
‘‘हमारा संघर्ष अहिंसक मार्ग पर ही चलना चाहिए, वरना गोरे शासनकर्ताओं और हम हिन्दुस्तानी सैनिकों के बीच क्या फर्क रहा ?’’ दत्त ने अपना निषेध प्रकट किया। ‘‘हमारा संघर्ष किसी व्यक्ति के विरोध में नहीं है; बल्कि प्रवृत्ति के विरुद्ध है; अवैध मार्ग से हिन्दुस्तान में प्रस्थापित अंग्रेज़ी सत्ता के विरुद्ध है। यदि हमने शान्ति का मार्ग छोड़ दिया तो वह अंग्रेज़ों के हाथों में पलीता देने के समान होगा।
सैनिकों की एकता को शस्त्रों के बल पर नेस्तनाबूद करने का अवसर उन्हें मिल जाएगा। इसलिए मुझे ऐसा लगता है कि आए हुए सैनिकों के प्रतिनिधियों को यह बात समझा दी जाए और हमें अमेरिकी कोन्सुलेट से माफ़ी माँगनी चाहिए,’’ मदन ने सुझाव दिया।
दास ने अमेरिकी कोन्सुलेट को फ़ोन करके नौसैनिकों की ओर से अमेरिकी राष्ट्रध्वज के अपमान के सन्दर्भ में माफ़ी माँगी।