बिड़ला विद्या मंदिर नैनीताल ९
बिड़ला विद्या मंदिर नैनीताल ९
मेरा प्रशन था कि यह बिड़ला विद्या मंदिर है या बिरला विद्या मंदिर ?
इस के एक मात्र जवाब में अपने प्यारे श्री हरीश ठुकराल भाई जी, रूद्रपुर वाले (अब ऊधमसिंह नगर), ने बताया कि वहां पढ़ कर निकले सभी बंधू बिरले हैं, बस इतना ही याद रखने की ज़रुरत है।
अभी हाल ही में वरिष्ठ भाई श्री रमेश रायजादा जी, उरई वाले, ने याद दिलाया कि हफ्ते में कुल एक बार शुक्रवार रात को डिनर में परांठे मिलते थे। गिनती पर कोई राशन नहीं था, यानि कि चाहे जितने भी खाओ। टिन के खांचो से कटे, गुंदा हुआ आटा एक टेबल पर फैला दिया जाता था और कनस्तर या डालडा के डिब्बों को काट कर बनाए गए खांचो से दे दना दन काट काट कर परांठे एक बड़े से तवे पर सेंकने के लिए फेंके जाते थे। परांठा बस परांठा होता है, उसके आकार प्रकार से कोई मतलब नहीं। सभी भाई ऐसे टूट पड़ते थे कि जैसे फिर यह मौका फिर मिलेगा या नहीं।
१९७१ में 9th क्लास में सीनियर्स में आये तब और भी कुछ सीखने को मिला। पैंट और जर्किन पहनते थे। डाइनिंग हाल में सभी एक या दो खाली पॉलिथीन जेबों में लाते थे। खाते जाते और पॉलिथीनों में भी पैक करते जाते। पॉलिथीन जर्किन के अन्दर।
श्री धाराबल्लभ गुरु जी नेहरु हाउस के हाउस मास्टर थे।
गुरु हमारी नादानियों को भले ही नज़र अंदाज़ या माफ़ कर दे, पर गुरु गुरु होता है, क्योंकि वो हमसे कम से कम २० वर्ष पूर्व हाई स्कूल कर चुका होता है।
एक बार श्री धाराबल्लभ गुरु जी ने जर्किन के अन्दर चैकिंग शुरू कर दी। अब क्या था, आनन फानन में सभी ने अपने अपने पॉलिथीन पैकेट जर्किन से निकाल निकाल टेबल के नीचे फेंक दिए। शुरू को एक दो भाई ही पकड़े गए। एक दो लप्पड़ खा कर छोड़ दिए गए।
अगले दिन जब सफाई कर्मचारी ने डाइनिंग हाल की सफाई की तब टेबलों के नीचे का नजारा बच्चीराम व जीतराम (वहां के हैड शैफ या कुक) को दिखाया. परांठो से भरे पॉलिथीन पैकेट ही पैकेट हर तरफ बिखरे पड़े थे। बच्चीराम व जीतराम बहुत अच्छे थे। बच्चो को दण्ड ना मिले, अतः बात को दबा गए।
वो शुक्रवार रात पैक किये हुए परांठे शनिवार व रविवार को प्रातः ७ बजे पीटी से लौटने पर हाउस के लाकर रूम में घर से लाये हुए अचार के साथ खाए जाते थे. जो भाई अचार शेयर नहीं करते थे, उनके लाकर तोड़ कर अचार चोरी हो जाते थे।
जूनियर्स में ब्रेंटन में मुन्ना दीदी सभी बच्चों से घर से लाया समान अपने पास जमा करा लेती थी, जैसे कि रुपये, अचार, घी, बेसन के लड्डू आदि। बेसन के लड्डू रात को डिनर के बाद हाउस में ही सभी बच्चों को एक दो दिन में बाँट देती थी। अचार व् घी, हाउस के सभी बच्चों को लंच या डिनर के साथ डाइनिंग हॉल में बटवा देती थी।
महीने में एक टाउन टर्न होता था। महीने के आखरी शनिवार को शाम ४ बजे टाउन (मल्लीताल) जाना अलाउ होता था, तब बच्चों को उनके जमा रुपयों में से मुन्ना दीदी १० या २० रूपये उनकी माँग के अनुसार दे देती थी।
तब २६५ मिलीलीटर की कोकाकोला ५०पैसे की आती थी और मॉडर्न बुक डिपो में सॉफ्टी आइस क्रीम २ रूपये की मिलती थी।
अतः टाउन २ घंटे घूमने के लिए १० – २० रूपये बहुत होते थे। टाउन टर्न पर हॉर्स राइडिंग व बोटिंग अलाउड नहीं थी। फ्लैट्स पर नैनी देवी मंदिर के सामने चाट हाउस में देशी घी की चाट की एक ही दुकान थी। बच्चों के फेवरेट आइटम थे: सॉफ्टी आइस क्रीम, पॉप कॉर्न, टिनड पाइनएप्पल जूस, चाट हाउस में आलू की टिकिया, नानक स्वीट हाउस की ठंडी रस मलाई........आदि....
क्रमशः