सीख
सीख
बड़े चाचा के यहाँ सबसे छोटे भाई की शादी की गहमा गहमी वाला घर था ।माँ चाची ताई बुआ सब सजी धजी यहाँ वहाँ डोल रहीं थी ।तभी पाश्चात्य परिधान में रहनें वाली छोटी बहनें पारम्परिक तरीके से साड़ी पहन कर हमारे पास आई और हमसे बड़ो के लिये उलाहना देते हुये बोलीं ।”दीदी हमारे घर के लोग भी अजीब हैं ।वो देखो भाभियाँ सूट पहन कर खुले बाल इतरा रहीँ हैं और हम बहनो को इन बुज़ुर्गों ने पारम्परिक तरीके से रहने के सख्त निर्देश दिये हैं ।”
हम कुछ कहते कि पास खड़ी छोटी चाची ने सब सुन लिया ।वो पास आ कर समझाते हुये बोली “ देखो तुम लोग घर की बेटियाँ हो हम लोग कुछ कहेंगे तो कोई बुरा नहीं मानेगा वैसे तो रोज़मर्रा में जैसे चाहो रहती ही हो सब लोग । तीज त्योहार व शादी ब्याह के मौके में पारम्परिक परिधान हमारी सांस्कृतिक विरासत को दर्शातें हैं ।पता है तुम्हारे बाबा कहते थे ।धी से कही बहू ने समझी ।”यानी जो बात बहुओं से कहनी है वह पहले बेटियों पर लागू करो यानी उनसे कहो ।बहुयें तो पराये घर से आईं हैं जैसा देखेंगी ढल जायेंगीं ।”
थोड़ी देर बाद ढोलक मंजीरा की मधुर आवाज ने हम बहनों का ध्यान खींचा वहाँ पँहुचने पर पाया कि भाभियाँ पारम्परिक तरीके से सज धज कर ढोलक की थाप पर नाच गा रहीँ थी और माँ ,चाची ,बुआ मुग्धभाव से उनकी बलैंया ले रहीं थी ।हम बहनें भी एक दूसरे को देखते हुये जल्दी से जाकर उन लोगों में शामिल हो गये ।