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मवाना टॉकीज भाग 8

मवाना टॉकीज भाग 8

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क्या कोई और है जो यह काम करता हो? चटर्जी ने मनोहर से पूछा 
नहीं साहब! मनोहर बोला, भला इस भुतहा जगह में और कौन आएगा? मेरे अलावा और कोई यहाँ न आता है न कुछ करता है। 
चटर्जी समझ नहीं पा रहे थे। अगर कल की घटना सोमू के मन की उपज थी तो उसने कल्पना में यही फिल्म कैसे देखी होगी? उसने सुबह ही पुराने मंदिर वाली फिल्म देखे जाने का दावा किया था। और शाम को सच में वही फिल्म उन्होंने भी प्रोजेक्टर में लगी देखी। अगर सोमू ने सच में कल यह फिल्म नहीं देखी होती तो आज सुबह वह इसका वर्णन कैसे कर सकता था? चटर्जी ने मनोहर को चले जाने को कहा। मनोहर ने प्रोजेक्टर बंद करके अलमारी में रख दिया और विदा हो गया। 
अब चटर्जी सोमू से बोले, एक बात मेरी समझ से बाहर है 
क्या सर? सोमू ने पूछा 
अगर कल कोई फिल्म नहीं चली थी तो तुमने देखी कैसे? तुम आज सुबह ही मुझे इस मंदिर वाली फिल्म के बारे में बता चुके थे इसका मतलब बाकी बातें भले ही तुम्हारी कल्पना की उपज हो लेकिन यह फिल्म तो तुमने जरूर देखी होगी। इसके पीछे क्या राज है इसका खुलासा भी करना जरूरी है! इतना कहकर चटर्जी बड़ी बारीकी से पूरे हॉल की जांच में जुट गए। उन्होंने एक एक कोना खुदरा बड़ी बारीकी से देखना शुरू किया। कई जगह दीवारें भी ठोंक कर देखी। सोमू चुपचाप उनके पीछे चलता रहा। एक जगह सीढ़ी चढ़कर चटर्जी ऊपर चले गए। सोमू नीचे ध्यान से एक जगह कुछ देखने रुक गया। पांच मिनट के बाद सोमू ऊपर गया तो चटर्जी गायब थे। सोमू ने ऊपर का कोना खुदरा तलाश कर डाला लेकिन चटर्जी की छाया का भी पता नहीं चला। कहीं वे प्रोजेक्शन रूम के पिछवाड़े वाली सीढ़ी से उतर कर तो नहीं चले गए? ऐसा सोचकर सोमू खुद उसी सीढ़ी से नीचे उतरा और उसने मवाना टॉकीज के परिसर का हर कोना छान मारा लेकिन डॉ चटर्जी गधे के सिर से सींग की तरह गायब हो चुके थे। आखिर हार कर सोमू वहाँ से बाहर चला आया। डॉ चटर्जी की कार उसी जगह पर खड़ी थी जहाँ वे पार्क करके भीतर गए थे। सोमू ने जाकर कार को चेक किया तो सभी दरवाजे मजबूती से बंद थे। सोमू एक बार फिर मवाना टॉकीज में पहुंचा और उसने जोर जोर से डॉ चटर्जी के नाम की पुकार लगाईं लेकिन कोई प्रति उत्तर नहीं मिला। डॉ चटर्जी गायब हो चुके थे। आधी रात हो चुकी थी। थक हार कर सोमू घर चला गया। 


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