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मुस्कराता गुलाब

मुस्कराता गुलाब

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मौसम हसीन था ।सूर्य आहिस्ता- आहिस्ता अपना सफ़र तय करके मंजिल पाने ही वाला था । हवा में शीतलता थी ।डालियों पर बैठी कोयल कु-कू की मधुर ध्वनि से सबको अपनी तरफ आकर्षित कर रही थी ।जैसे ही मेरी कक्षा खत्म हुई मैं सीधे घर जाने के लिए रोडवेज आ रही थी कि रास्ते में ही एक अहाते में खिले हुए गुलाब ने मुझे इस कदर आकर्षित किया कि मैं अपने आप को रोक न सकी मैं सीधे फूलों को निहारने की या यूँ कहिए कि तोड़ने की गरज से दरवाज़े के करीब पहुँची।

गेट बंद था ।घंटी बजाते ही एक खूबसूरत लड़की ने मुस्कुरा कर स्वागत किया तथा दरवाज़ा खोल कर अंदर आने की कहा । उस हसीन लड़की को देख कर मुग्ध हो गई। कितनी भोली लग रही थी ?उसकी वाणी में कोमलता थी किंतु उसकी मुस्कुराहट में एक तीखा दर्द भी शामिल था । वह मुझे अपने ड्राइंग रूम में ले गई । जाते ही मेरी निगाह एक ऐसे व्यक्ति पर पड़ी जो विवशता की तस्वीर बना बैठा था । उठने की कोशिश की पर उठ न सका सिर्फ मुस्कुरा कर व्हील चेयर पर बैठे-बैठे ही मेरे अभिवादन को स्वीकार किया । मेरी उत्सुकता बढ़ती जा रही थी कि यह व्यक्ति इस लड़की के किस रिश्ते में आता है ? इस प्रश्न का हल में स्वयं ढूंढ रही थी बार-बार मेरी निगाह उसमें खिलाफ पुरुष पर पड़ रही थी सब कुछ जानने की इच्छा हो रही थी लड़की अंदर जाने पानी लेने गई उस व्यक्ति ने मेरी तरफ देखकर मधुर शब्दों में पूछा कि आप डिग्री कॉलेज में पढ़ती है क्या मैंने कहा जी हाँ ।

उसने मेरा नाम पूछा ।मैंने जैसे ही अपना नाम बताया। ,उसने कहा मैंने आपके बारे में बहुत सुना था किंतु आज देख भी लिया ।उन्होंने बताया कि शर्मा जी आपकी बहुत तारीफ़ करते हैं । मैंने सहमते हुए कहा ,यूँ लोग कहते होंगे ।मैं तो साधारण -सी एक लड़की हूँ । आज आपके अहाते में खिले गुलाबों ने आपके पास बुलाया है ।मुझे बहुत पसंद हैं गुलाब के फूल । प्रतिदिन इन्हें देखते हुए मंत्रमुग्ध हो जाती थी ,आज हिम्मत भी कर ली इन्हें क़रीब से देखने की ।

उसने कहा ,"अच्छा किया आपने ।आप राजकीय महाविद्यालय में पढ़ती हैं न ?मैं पूनम का दाख़िला वहीं करवाना चाहता हूँ ।इस वर्ष इसने बारहवीं की परीक्षा दी है । मैं चाहता हूँ कि यह पढ़-लिखकर अपने पैरों पर खड़ी हो जाए । किसी पर निर्भर न रहे ।मेरी हालत तो आप देख ही रही हैं ।मैं तो अब किसी लायक रहा नहीं ।मैं भी इसके ऊपर बोझ बन चुका हूँ ।

मैंने बताया कि माहौल कोई बहुत अच्छा नहीं है किंतु मेरे लिए तो काफी अच्छा है ,क्योंकि कॉलेज में मुझे बहुत सम्मान और स्नेह मिलता है। माहौल से क्या लेना देना ? वह तो अपने आप बनाया जा सकता है । आप एडमिशन करवा दीजिए । मुझसे जो भी सहायता हो सकेगी , मैं करूंगी । किंतु यह बताइए कि पूनम आपकी क्या लगती है ?

उसने कहा, " मेरी पत्नी है ।"

जैसे ही मैंने सुना मैं सहम सी गई । मुझे यकीन नहीं हो रहा था कि दोनों पति पत्नी हैं । कारण दोनों में काफी अंतर था । पुरुष काफी बड़ा लग रहा था उम्र में ,शरीर से बहुत भारी था । लड़की दुबली- पतली, बहुत खूबसूरत तथा बहुत ही मासूम सी लग रही थी ।मन ही मन सोचने लगी कि आख़िर इन दोनों की शादी कैसे हो गई ? बार -बार यही प्रश्न ज़ुबान पर आता किंतु पूछ नहीं सकी । मैंने साहस करके पूछा , "क्या आप शादी के पहले से ही ऐसे थे या बाद में कोई हादसा हो गया आपके साथ ?" इतना पूछते ही वह पुरुष भावुक हो गया । उसकी ऑंखें सजल हो गईं और करुण स्वर में बोला , "नहीं ,यह तो अभी जल्दी हुआ है मेरी शादी बहुत पहले ही हो गई थी ।पूनम जब आठवीं में पढ़ रही थी और मैं ठेकेदारी का काम करता था । सामने वाली सड़क की तरफ इशारा करते हुए बताया कि इस सड़क का ठेका मैंने लिया था । उन्हीं दिनों मैंने पूनम को आते -जाते देखा और आकर्षित हो गया । एक दिन मैंने अपने प्यार का इज़हार कर दिया। पूनम भी मुझे चाहने लगी । इसके बाद हम लोगों ने शादी का निर्णय लिया । घर वालों से बताया तो वे राज़ी नहीं हुए क्योंकि हम अलग-अलग जाति के थे । पूनम के घर वाले तो तैयार हो गए पर मेरे घर वाले तैयार नहीं हुए घर

वालों से विरोध कर के मैंने पूनम से शादी कर ली । मेरे घरवाले बेहद नाराज़ हुए और मुझे परिवार में रहने नहीं दिया गया। पूनम के घर वालों ने मुझे भी अपने साथ रखा ।मैं घर वालों की परवाह किए बिना यहीं रहने लगा और कभी अपने घर नहीं गया और न कभी किसी ने मिलने की कोशिश की। हम दोनों बेहद खुश थे , पूरे परिवार के साथ ।पूनम के साथ रहकर मुझे अपने परिवार की कमी का एहसास कभी नहीं हुआ , क्योंकि पूनम ही मेरी जिंदगी है । इसके लिए मैं कुछ भी कर सकता था । मैं तो कभी इसे कोई काम करने नहीं देना चाहता था। उसके कपड़े भी ख़ुद धोता था । हमदोनों बहुत खुश थे । जिंदगी का हर दिन एक नई खुशी लेकर आता था । किन्तु हमारी खुशियाँ खुदा को रास नहीं आई । किसी की नज़र लग गई । एक दिन अचानक मेरा एक्सीडेंट हो गया । मैं बुरी तरह घायल हो गया मेरे बचने की कोई उम्मीद नहीं थी किंतु पूनम की मुहब्बत ने मुझे बचा लिया । बच तो गया किंतु अपाहिज़ हो गया ।कमर के नीचे का हिस्सा अचल हो गया ।दोनों पैर काटने पड़े । लगभग दस साल से मैं एक अपाहिज़ का जीवन जी रहा हूँ । अब मेरी बैसाखी भी यही है ।मैं अपने हर काम के लिए इसी पर निर्भर हूँ । जिस पूनम को मैं कुछ भी नहीं करने देता था ,वह आज मेरे सारे काम करती है कभी दुखी नहीं होती ।हमेशा मुस्कराती रहती है । देखिए न ,अब भी मुस्करा रही है ।" उसकी तरफ़ जब मैंने देखा तो सचमुच मुस्करा रही थी ।

आगे की कहानी बताते -बताते वह रो पड़ा ।मेरी आँखें भी भर आईं । अपने आँसू पोंछते हुए कहने लगा कि इसके कोमल हाथों के स्पर्श ने मेरे सारे घाव भर दिए किंतु मैं फिर कभी चल नहीं सका । एक अपाहिज बन गया ,अपाहिज़ । उसकी आँखों से आँसू की बूँदें टपकने लगीं । पूनम ने उसके आँसू पोंछते हुए कहा ,"क्या हो गया आपको ?मैं हूँ न आपके पास । फिर आपको क्या सोचना ? ईश्वर ने यही लिखा था हमारी क़िस्मत में तो क्या कर सकते हैं ? आप भी न ,क्या लेकर बैठ गए ?"

मुस्कराते हुए गिलास का पानी उसके मुँह में लगा दिया और पूछने लगी कि चाय ले आऊँ ?उसने कहा ,"नहीं ,इनलोगों को पिला दो चाय ।कॉलेज से थककर आ रही हैं । "

मैंने कहा ,"मैं चाय नहीं पीती हूँ ।" पूनम को देख कर मुझे रोना आ रहा था । उसकी उम्र बहुत कम थी । बीस वर्ष के आस-पास की होगी उसकी उम्र । इतनी छोटी उम्र में इतना बड़ा आघात ?

कुछ देर की खामोशी के बाद उसने फिर अपनी कहानी शुरू की । उसने बताया कि मैंने पूनम से कई बार कहा कि तुम अपनी दूसरी शादी कर लो क्योंकि मैं तुम्हें खुश देखना चाहता हूँ । तुम्हारी खुशी मेरी खुशी है । तुम किसी और की हो कर भी खुश रहो ,इसी में मेरी खुशी होगी । मेरी जिंदगी का क्या ठिकाना ? अब तो मैं किसी लायक नहीं रहा । मैं तुम्हें यह बोझ अब ज़्यादा दिन उठाने नहीं दूँगा ।मैं नहीं चाहता कि जिस पूनम को मैंने अपने कपड़े तक नहीं धोने दिए वही अब दिन -रात मेरे लिए खटती रहे । पूनम कहने लगी कि क्या आपने मुझे इतना ही जाना और समझा है ? इतना स्वार्थी नहीं हूँ मैं । आपसे दूर जाकर कभी खुश नहीं रह पाऊँगी । आपकी सेवा में ही मुझे सुख मिलता है । आपने मेरे प्यार को शायद नहीं समझा है? प्यार करने वाले कभी भी एक दूसरे से अलग रहकर खुश नहीं रह सकते । आपने यह कैसे सोच लिया कि मैं कहीं और जाकर खुश रह लूँगी ?आपके प्यार का कर्ज क्या मैं आजीवन आप की सेवा करके नहीं चुका सकती ? क्या मैं इसके काबिल नहीं ? आप अपने दिल से पूछ कर देखिए कि क्या आप मेरे बगैर खुश रह पाएँगे ? प्यार का रंग इतना कच्चा नहीं होता जो इतनी जल्दी उतर जाए । मैं अपनी जिंदगी में फिर कभी किसी को नहीं आने देना चाहती । आपने मेरे लिए जो कुछ भी किया है ,क्या उसके बदले में आप की सेवा भी नहीं कर सकती? मेरे कारण आप ने अपना परिवार छोड़ दिया तो मैं क्या इतना भी नहीं कर सकती? आज से फिर कभी इस तरह की बात ज़ुबाँ पर मत लाना ।आज मैं समझ गई कि आपको मेरी खुशी का बहुत ख्याल है किंतु इस तरह की खुशी मुझे नहीं चाहिए । मेरी खुशी मेरा सुहाग मेरी तकदीर तो आप हैं सिर्फ आप । अब मुझे निस्वार्थ भाव से अपनी पूजा करते रहने दीजिए । खुदा की इच्छा यही है तो इसे अस्वीकार क्यों करूँ ? खुदा ने जो गम दिया है ,वह हमारे प्यार की परीक्षा है । वह प्यार ही क्या है जो विपरीत परिस्थितियों में ख़त्म हो जाए ।उसके बाद हम दोनों एक दूसरे को गले गले लग कर काफी देर तक रोते रहे । मैंने उसी वक्त निर्णय लिया कि अब मैं इसे पढ़ा कर किसी योग्य बनाऊँगा । फिर मैंने दसवीं का फॉर्म भरवाया ,घर में ही ट्यूशन लगवाया । इंटर करवाया । अब इस साल कॉलेज में एडमिशन करवाऊँगा ।

इसने भी बड़ी मेहनत की सफलता प्राप्त करती रही ।मेरी देखभाल के साथ -साथ पढ़ाई करना ,एक बहुत बड़ी चुनौती है इसके लिए ।

फिर उसने कहा ,देख रही हैं आप यह सड़क ? मैंने ही बनवाई थी किंतु इस सड़क पर दो कदम भी चल न सका । मैं कितना अभागा हूँ कि मैं पूनम को कोई सुख नहीं दे सका । जानती हो ,यह मेरी कितनी सेवा करती है ? यह नहीं होती तो मैं कब का इस दुनिया से विदा ले चुका होता किंतु इसकी वज़ह से जिंदा हूँ । तुम्हें यकीन नहीं होगा कि अभी भी कभी पूनम गुस्सा नहीं होती । मैं पूनम का अपने प्रति प्यार देखकर अक्सर रो पड़ता हूँ किंतु अब बैठ कर सब कुछ सिर्फ देखना ही शेष है । मेरी जिंदगी इसी के सहारे चल रही ।बात समाप्त हुई किंतु मेरा मन चाह रहा था कि मैं हमेशा वहीं बैठ कर उसकी बातें सुनती रहूँ । जिंदगी की अनिश्चितता से बेहद दुखी थी ।मुझे ऐसा लगा कि जिंदगी सिर्फ ग़मों से भरी पड़ी है । कितने लोग हैं जो अपनी ज़िंदगी की जंग लड़ रहे हैं । काफ़ी देर हो चुकी थी । मैंने कहा ,"अब चलती हूँ ।आपलोगों की कहानी जानकर मन बहुत दुखी है ।मैं किसी काम आ सकूँ तो मुझे अवश्य याद कीजियेगा ।मुझे बहुत खुशी होगी ।जब मैं चलने को तैयार हुई तो उसने पूनम से कहा कि पूनम ,इन्हें फूल तोड़ कर दे दो । उसने मुझे एक गुलाब का बड़ा-सा लाल रंग का फूल बगीचे से तोड़कर दिया। वहाँ के खिले हुए फूलों को देख कर मुझे ऐसा लग रहा था कि जैसे वे विधाता की क्रूरता को देखकर मुस्कुरा रहे हैं । उसके अहाते में वह काँटों के बीच खिलकर मुस्कुरा रहे हैं और उस परिवार को भी ग़म में मुस्कुराने की प्रेरणा दे रहे हैं । मैं बेहद निराश थी ज़िंदगी का यह रूप देखकर । सोच कर बार-बार आँखें सजल हो रहीं थीं । उस दर्द भरी ज़िंदगी की कहानी आज भी मुझे रुला देती है । तमाम प्रश्न अपने आप से करती रहती हूँ ।उन दोनों के सच्चे प्यार की सराहना करते नहीं थकती हूँ । सच्चा प्यार यही है । प्यार की डोरी पूरी जिंदगी को एक दूसरे से बाँधे रखती है जिस पर तूफान व विपरीत परिस्थियों का कोई असर नहीं पड़ता । सच्चा प्यार कभी भी अपना रूप नहीं बदलता ।यही यथार्थ है।


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