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Kavi Vijay Kumar Vidrohi

Inspirational

3.0  

Kavi Vijay Kumar Vidrohi

Inspirational

" मेरी तन्हाई "

" मेरी तन्हाई "

2 mins
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मेरी कलम नहीं लिखती, ज़ुल्फों, चालों पर गालों पर । 
स्वर टूटा जाता है मेरा , कुछ मौलिक कंगालों पर । 
भारत के झंडे पे अब ,  गौ माता काटी जाती है । 
अमन,  प्रेम,  संबंधों वाली ,  राहें पाटी जाती है । 
अंतरमन पूछे ये भारत ,  ज़िंदाबाद नहीं है क्या । 
तुझमें टीपू, वीर शिवा , राणा,आज़ाद नहीं है क्या । 
उत्तर ना दे पाता , अपने रक्तिम आँसू पीता हूँ  । 
एक अरब आबादी  फिर भी , तन्हाई में जीता हूँ।

वो दाँई गोदी  से उठकर, बाँई गोद में जा बैठा । 
सारे रिश्ते – नाते  भूला , रहता है ऐंठा – ऐंठा । 
भारत माँ के आँचल की वो,आज किनारी फाड़ रहा । 
कुछ ना कर पाऐगा फिर भी , घाटी में चिंघाड़ रहा । 
कह दो उस से भारत के दुश्मन से,प्यार नहीं करते । 
कुछ भी हो जाऐ लेकिन हम ,पहला वार नहीं करते । 
भारत माँ के रिसते घाव ,  मैं गीतों से सीता हूँ ।
एक अरब आबादी फिर  भी ,तन्हाई में जीता हूँ । 

नये ख़ून में अब तो मुझको, कोई जोश नहीं दिखता । 
खुदीराम,अब्दुल हमीद, सावरकर बोस नहीं दिखता । 
बहती है कायरता तन में , अब ना कोई रवानी है ।
देश की नवपीढ़ी का लगता, ख़ून हो गया पानी है । 
मेरी कलम दुधारी है ख़ुद , मेरा ख़ून बहाती है । 
देशप्रेम लिखती है फिर भी ,“विद्रोही”कहलाती है । 
यौवनधन भरपूर वतन है, फिर भी रीता-रीता हूँ । 
एक अरब आबादी फिर भी , तन्हाई में जीता हूँ । 
                                                     

  
 

 


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