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मिज़ाजपुरसी

मिज़ाजपुरसी

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बिलासपुर और रामपुर के आगे प्रदेशों के नाम इसलिए लिखने पड़े कि यह कोई जयपुर और लखनऊ तो हैं नहीं कि भारत में इन नामों का कोई दूसरा शहर न हो। जयपुर वाकई पिंक सिटी है, गुलाबी शहर, हर चीज़ गुलाबी और लखनऊ तहजीब का शहर। लखनऊ में खाने की मेज पर तो यह तहजीब देखने को मिलती है, पहले आप, पहले आप, लेकिन अगर ट्रेन की जनरल बोगी में चढ़ने की बात हो या फिर उमराव जान पर हक जताने की बात हो, तो पहले आप पहले आप की तहजीब गयी तेल लेने। मरने मारने में ऊ.प्र. के अन्य शहरों जैसा ही हाल।

भारत में ९ ऐसी जगह हैं जिस नाम से दो या तीन शहर है, १. औरंगाबाद, एक महाराष्ट्र में और एक बिहार में, २. बिलासपुर, एक हिमाचल प्रदेश में और एक छतीसगढ़ में, ३ चंबा, एक हिमाचल प्रदेश में और एक उत्तराखंड में, ४. दुर्गापुर, एक महाराष्ट्र में और एक बंगाल में, ५. फतेहाबाद, एक उत्तर प्रदेश में, एक मध्य प्रदेश और एक हरियाणा में, ६. इस्लामपुर, एक बंगाल में और एक बिहार में, ७. खड़गपुर, एक बंगाल में और एक बिहार में, 8. कोटा, एक राजस्थान में, एक कर्नाटक में और एक उत्तर प्रदेश में, ९. उदयपुर, एक राजस्थान में, एक त्रिपुरा में और एक हिमाचल प्रदेश में।

और हमारे देश भारत में ३२ ऐसी जगह हैं, जो रामपुर के नाम से जानी जाती हैं। देश के लगभग सभी प्रदेशों में, लेकिन उत्तर प्रदेश का रामपुर सबसे ज्यादा महशूर है। चाकुओं और नवाबों एवं उनके शौक की वजह से। नौ इंची रामपुरी चाकू, वाकई वहाँ के सब्जी काटने वाले चाकुओं की धार का कोई जोड़ नहीं।

नवाबों की अब सिर्फ कहानियाँ रह गई हैं। इन्द्र देवता जैसी ही। कहते हैं कि वहाँ के नवाब तरह-तरह के किमाम, सुपारी और पौरुष शक्ति वर्धक जड़ी बूटियां खाते थे, उस समय की वियाग्रा, जिन्सैंग, मूसली। उनकी यह लड़ाई रामपुरी चाकू की लंबाई से थी। पहले रामपुरी चाकू १२ इंची बनते थे। नवाबों ने चाकुओं की लम्बाई तीन इंच कम करा दी और अपनी मर्दानगी की लम्बाई बढ़ाने में लग गए। जीत तो राजा की ही होती है। चाकू ने अपनी हार मान ली। नहीं तो उसे पता था कि अब घटे तो सीधे ६ इंची हो जायेंगे।

आजादी के बाद सरकार ने रामपुरी नवाबी और चाकुओं, दोनों पर चाकू चला दिया, नवाबी खत्म कर दी गई और चाकू की लम्बाई पर ६ इंच का प्रतिबन्ध लगा दिया। फिर भी चाकू अपना वजूद बचा कर जीत गए। जानी, ये चाकू है, लग जाये तो खून निकल आता है. आज भी रामपुरी चाकू बेमिसाल है।

।हमें बचपन से ही बेड-टी पीने की बुरी आदत थी। हम पत्नी के इस बात के लिए भी अहसान मन्द है कि घड़ी की सुइयाँ इधर से उधर हो जाए, पर बारह महीने हमारी बेड-टी ठीक प्रातः ६ बजे हमारे बेड पर आ जाती है और मुर्गे की बाँग की तरह एक आवाज़ आती है, 'चाय रखी है', उसी से हमारी नींद खुलती हकहते हैं कि सुबह के सपने सच होते हैं और हमारे ऊपर इस मामले में भी ईश्वर की विशेष अनुकम्पा है कि हमें सुबह के समय ही सपने आते हैं, ठीक ५ बज कर ५० मिनट पर शुरू होते हैं एक बार रात्रि का अंतिम प्रहर था। कुछ की सुबह हो चुकी थी और बाकी नींद में मस्त थे। हम नींद में थे। मानस पटल पर एक सपना आया...........ै।


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