विस्थापन
विस्थापन
पार्क में नित्य आने वालों की भीड़ में कहीँ बच्चे झूला झूलते हुए पेंग बढा नयी उँचाइयों को छूने की कोशिश कर रहे थे ,तो कहीँ शरीर से थके पर मन से जवान लोग जोड़ों के दर्द के कारण जमीन की हरी घास पर बैठने में असमर्थ पार्क में पड़ी बैंचों पर बैठ नक़ली ठहाके लगा कर झूठी हँसी हँसनें की कोशिश कर रहे थे ।
यही वह समय था जब वो मिल कर अपने गुज़रे सुनहरे समय को याद करते और नयी पीढी के दाँव पेंचों से एक दूसरे को आगाह कर विपरीत परिस्थितियों में बचाव के तरीके एक दूसरे को बताते ।जाने कब वक्त का कौन सा अंधड़ किस बुजुर्ग की जड़ हिला दे और उसे परिस्थितियों से समझौता करके विस्थापित होना पड़े ।
तभी उनमें से एक बुजुर्ग नें रोना रोया “अकेले रहते हुये हम तो मन पसन्द स्वाद के लिये तरस जातें हैं।मेरी तो कोई सुनता ही नहीं है।" जब एक बार दर्द साझा करना शुरू हुआ तो सभी के दिलों से दर्द बह निकले।एक बुजुर्ग की बात खत्म नहीं हुई कि दूसरे ने अपना दुखड़ा कहना शुरु कर दिया “सारा जीवन यहाँ बीत गया अब बेटा अपने साथ महानगरी में ले जाना चाहता है।जहाँ मैं किसी को जानता ही नहीं ।वहाँ हमारा मन कैसे लगेगा ।”
उनकी बातें सुन अकेले जीवन यापन कर रहे किनारे बैठे बुजुर्ग से रहा नहीं गया वो अपनी जगह से उठ उनके बीच में आये और कहने लगे , ”आप लोग यहाँ बैठ अपने बच्चों की बुराइयाँ कर रहे हैं कभी सोचा कि वो ऐसा क्यूँ करते हैं ?अरे पहली बात तो यह है कि जो संस्कार हमने उन्हे दिये हैं तो वो वही करेंगे। बच्चों को दोष देनें से पहले हमें यह सोचना होगा कि आखिर हमने अपने बुज़ुर्गों के साथ कैसा व्यवहार किया था और बदलते वक्त में कहीं हमारी अपेक्षाएं बच्चों से बढ़ तो नहीं गयी हैं ।आज हम बच्चों के साथ उनके पास रहने नहीं जाना चाहते और न ही बच्चे नौकरी छोड़ हमारे पास रह सकते हैं तो बीते समय में हम भी तो अपना गाँव घर सब छोड़ कर शहरों में रहने आ गये थे ।तब हमारे माता पिता को भी तो ऐसा ही कष्ट हुआ होगा ।अगर आज हम वापस गाँव में जा कर बस नहीं सकते तो नयी पीढी से कैसे आशा करते हैं कि वह परदेश या महानगरी में रहना छोड़ वापस हमारे पास आये ।बूढ़े पेड़ों को जड़ो से उखड़ कर नयी जगह पनपनें में कष्ट तो जरूर होता है पर नन्हे पौध नयी जगह अच्छी तरह पल्लवित हो जाएं इसके लिये बूढ़े पेड़ों को भी साथ में उखड़ना पड़ता है ।हमें खुश होना चाहिये कि बच्चे हमारे साथ रहना चाहते हैं।”
तभी सबने देखा कहीँ दूर से ला कर पार्क में लगाया गया बूढ़ा दरख्त साथ में उखड़ कर आये नन्हे पौंधो के साथ हवा के झोंके से लहरा कर इस बात पर मानो अपनी हामी भर रहा हो।