Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!
Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!

Mahesh Dube

Thriller

1.0  

Mahesh Dube

Thriller

तीन दिन भाग 7

तीन दिन भाग 7

4 mins
7.3K


तीन दिन भाग 7

 

चंद्रशेखर और गुंडप्पा एक झाड़ियों के झुरमुट को खंगाल रहे थे तभी उन्हें दूर पेड़ के नीचे मंगतराम लेटा हुआ नजर आया। गुंडप्पा ने हँसते हुए कहा वो देखो पहलवान! अपने मंगत अंकल थक गए हैं! इतना कहते हुए वे दोनों मंगत के पास पहुंचे तो उनके सर्वांग को मानो लकवा मार गया। मंगत का पूरा शरीर तो सही सलामत था पर उसकी खोपड़ी पूरी तरह चूर चूर हो गई थी। एक लुगदी की तरह उसका सर उसके धड़ से जुड़ा हुआ था जिसमें से बह-बह कर रक्त बाहर निकल रहा था और बगल में ही एक वजनी रक्त रंजित पत्थर पड़ा हुआ था। अचानक चंद्रशेखर पहलवान ने दूर एक छाया की तरह झाँवरमल को भागते हुए देखा। लेकिन उसकी लाल रेशमी कमीज और गले की मोटी चैन धूप में खूब चमक रहे थे। चंद्रशेखर उसके पीछे भागा पर झाँवर पता नहीं कहाँ गायब हो गया। थोड़ी दूरी पर चंद्रशेखर को सदाशिव डॉ मानव और सुदर्शन दिखे जो झाँवर को ढूंढने निकले थे। मानव एक पेड़ के तने से सटकर बैठे सुबक रहे थे और उनके पास ही बैठा सदाशिव उन्हें समझा रहा था और सुदर्शन बगल में खड़े थे। मानव की तो दुनिया ही उजड़ चुकी थी। चन्द्रशेखर ने उन्हें जाकर मंगत के बारे में बताया तो वे जल्दी-जल्दी मंगत की लाश के पास आए। उसके जीवित होने का तो कोई सवाल ही नहीं था। उन्होंने नब्ज जांचना भी जरुरी नहीं समझा। उन्होने किले में आकर उपस्थित लोगों को इसकी सूचना दी जिसे सुनते ही नीलोफर बेहोश हो गई। बिंदिया और मधुलिका उसे होश में लाने की कोशिश करने लगे। फिर उसी दोपहर तीनो  मृतकों की दाह क्रिया करने का विचार कर लिया गया और सबने एकमत से उसपर स्वीकृति की मोहर मार दी। मंगत का खून करके झाँवर को भागते चंद्रशेखर ने खुद देखा था अतः शक की कोई गुंजाइश ही नहीं थी। अब सभी को झाँवर से खतरा था।वह शायद पागल हो चुका था। 

दूसरे दिन शनिवार 15 अगस्त दोपहर 11 बजे किले के मैदान में तीन चिताएं धू धू करके जल रही थी। बादाम बाई का अंतिम संस्कार उसके हत्यारे पति की अनुपस्थिति में हो रहा था। मंगतराम की पत्नी नीलू मुंह में ओढ़नी ठूंसे जार-जार रो रही थी। वैसे तो अब वह मंगत की अपार संपत्ति की मालकिन थी और अंततोगत्वा जिस कामना से उसने बूढ़े मंगत से शादी की थी वह पूरी हो गई थी पर मंगत की ऐसी दर्दनाक मौत ने उसे हिला कर रख दिया था। डॉ मानव के आंसू शायद सूख चुके थे! उन्होंने यंत्रचलित ढंग से सभी संस्कार निभाये थे और अब चुपचाप खड़े चिता की ओर देखकर भी मानो उसे न देखकर कहीं शून्य में देख रहे थे। नीलू ने रोते हुए डॉ मानव की ओर देखा और मानव की भी नजरें उससे टकराई तो उसे देखकर उनके सब्र का बाँध भी टूट गया और वे जोर से रो पड़े। अगल बगल के मित्रों ने उन्हें संभाला और ले जाकर एक पत्थर की शिला पर बैठाकर समझाने बुझाने लगे। इसके बाद सभी फिर कमरे में इकट्ठा हुए और रमन ने सभी को झाँवर से सावधान रहने को चेताया। झाँवर का दिमागी संतुलन शायद बिगड़ चुका था और वो कुछ भी कर सकता था यह सुनकर सभी महिलायें भय से थर थर कांपने लगीं। रमन ने कहा कि आज की रात सभी इसी हॉल में बिताएंगे। अब बिना जरुरत कोई अकेला नहीं रहेगा। और बाहर घूमने फिरने की भी कोई जरूरत नहीं है। झाँवर बाहर विक्षिप्तावस्था में घूम रहा है तो किसी को भी शिकार बना सकता है। किसी तरह डेढ़ दिन बिता लिए जाए। कल रात 12 बजे श्रीवास्तव आकर गेट खोल ही देगा तब बाहर से सहायता ली जायेगी और झाँवर को पकड़ लिया जाएगा । 

    फिर सबने किसी तरह थोड़ा बहुत कुछ खाया क्यों कि भूख प्यास तो सबकी मर चुकी थी पर शरीर चलाते रहने के लिए भी आहार आवश्यक था। भोजन के बाद सभी उसी हॉल में अपनी सुविधानुसार बैठ और लेट गए। रमनसिंह बड़ी सी आरामकुर्सी पर अधलेटे से पड़े थे। छाया और बिंदिया इन दर्दनाक घटनाओं पर चर्चा कर के सुबक रहीं थी। सदाशिव म्हात्रे दीवार की ओर मुंह करके लेटा हुआ था। उसकी पत्नी ललिता खिड़की पर खड़ी बाहर देख रही थी कि अचानक सदाशिव उठा और ललिता को डांटने लगा, "जब तेरेको मालूम है कि वो पागल बाहर हमको मारने को घूम रहा है तो तू खिड़की पर क्या लड्डू लेने को खड़ी है?" बाहर से ही कुछ फेंक के मारेगा तो मरेगी अभी! 

             वह बेचारी बुरी तरह सहम कर वहीं दीवार से लगकर उकड़ू बैठ गई और रोने लगी । सदाशिव फिर मुंह फेर कर सो गया। उसकी बगल में बैठी मधुलिका को सदाशिव पर बहुत गुस्सा आया। वो कुछ कहना चाहती थी पर गुंडप्पा ने आँखों ही आँखों में उसे बरज दिया तो वह शांत हो गई पर उसकी आँखें सदाशिव पर बरछी भाले बरसाती ही रही। इसी तरह दोपहर कटी और शाम का धुंधलका घिर आया।

कहानी अभी जारी है........

आखिर आजादी की उस शाम कौन और अपनी जिंदगी से आजाद हुआ। जानने के लिए पढ़िए भाग 8


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Thriller