किनारे कभी मिलते नही
किनारे कभी मिलते नही
कुछ तो है कि किनारे मिलते नहीं हैं लेकिन अलग अलग छोर में रह कर भी वे एक दूसरे के बिना अधूरे हैं ।
अना और अवि एक दूसरे के किनारे हैं ...अन्तहीन नफरतों के बावजूद भी उनके बीच के फासले एक सीमा में बधें हैं क्योंकि उनके बीच शान्त नदी सी बहती चाहे अनचाहे आ गयी स्नेहिल सी सन्तानों ने उन्हें मजबूर कर दिया कि वो अपने टूटते किनारो को सहेज के रखें ।
अना और अवि बच्चों के स्नेह में पड़ इतना तो जान गये कि "कि एक किनारा भी अगर टूटा तो बच्चे सैलाब की तरह बह निकलेगें ...और उनके हाथ रह जायेगा "सिफर"।
अना और अवि के बूढ़े होते मां पिता हमेशा कहते "निभाना है तुम्हें ये रिश्ता " ये बच्चे अब तुम लोगों के बीच के पुल हैं ..पुल कितना चरमरायें लड़खड़ाये अगर दोनों किनारे मजबूती से खड़े हैं ,तो पुल संभल जायेगा"
इन दो न मिलने वाले किनारों को मिलाने की साजिश आगे और पीछे की दोनों पीढी़यों ने की ...ये इनका नसीब है या उनकी गुस्ताखी......??
अना की मां कहती है "कुछ लोग जीवन जीते हैं, कुछ निभाते भर हैं ,और कुछ बिखर जाते हैं ...। बिखर जाने से बेहतर तो निभा जाना है"।
पर अना और अवि कई बार सोचते हैं कि "इस निभा भर देने से क्या उनकी समझदार पीढ़ी उन्हें माफ कर पायेगी"।