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अहम

अहम

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आहट होते ही अहम जाग गया था। हमेशा से ही वो कच्ची नींद ही सोता था। अंधेरे के कारण अहम को कुछ दिख नहीं रहा था तो वो कानों के भीतर तक पहुँचती आवाज पर ध्यान दे रहा था। बिस्तर का दूसरा कोना आवाज कर रहा था- शायद निशा उठ रही थी। अहम को चादर और निशा के बीच हो रही आवाज से चिढ़न होने लगी। उसने आँख खोली और सामने अंधेरे के गाढ़े समुद्र में कुछ ढूँढने लगा।


निशा की भी आँख अचानक ही खुली थी। एक बहुत जोर की प्यास, जिसे वो अपने सपने में महसूस कर रही थी। वो प्यास कब असल ज़िंदगी में उसके गले तक पहुँच कर उसे सुखाने लगी- उसे पता ही नहीं चला। जब आँख खुली तब गले की दीवारें सूख कर एक दूसरे चिपक गईं थी। वो चाहती तो वहीं उठ सकती थी पर उसके मन में पहले अहम का खयाल आया। करवट लेकर उसने अहम को देखा तो उसे अंधेरे और अहम में कोई अंतर नहीं दिखा। आखिरी बार आधी रात पानी के लिए उसने अहम को कब जगाया था? इस सवाल का जवाब कहीं बहुत दूर छुपा था और काफी कोशिश के बाद भी जब उसके हाथ नहीं आया। तभी बहुत हल्की खर्राटे की आवाज से निशा का ध्यान टूटा। चलो अच्छा ही है कि अहम सो रहा है- उसने सोचा और करवट बदलकर बिस्तर से उठने लगी। उस सवाल के आने के बाद से उसे चिढ़ होने लगी थी। बिस्तर से उतरकर वो बाहर हॉल में गई और वहाँ की लाइट्स ऑन कर दीं।


बेडरूम का दरवाजा खुले होने के कारण बाहर हॉल की रोशनी कमरे के अंधेरे को खत्म कर रही थी। किचन से बर्तनों की खटपट लगातार अहम को झुँझलाने का काम बखूबी कर रही थी। वो रह रह कर खुले दरवाजे को देखता और दांत पीस लेता।


“दरवाजा बंद करके भी तो जा सकती थी? अच्छे से पता है कि मुझे रोशनी में नींद नहीं आती। फिर भी परेशान करना है।” अहम का मुंह बंद था पर उसकी उँगलियाँ मुट्ठी में भिंचकर आपस में यही कह रही थी।


बर्तन की खटर पटर से हर बीते पल के साथ अहम की चिढ़न एक अजीब रूप लेने लगी। वो कसमसा रहा था। पिछले दिनों की सारी बातें जिन्होंने उसे हल्का सा भी बुरा महसूस करवाया था, वो सब उसे रह रहकर याद आने लगा। निशा का उसे इग्नोर करना, उसकी चीजें अस्त व्यस्त करना, उसे जानबूझकर इरिटेट करना, उसे वैल्यू ना देना और कल तो उसने जानबूझकर वही सब्जी बनाई थी जो उसे बिल्कुल नहीं पसंद और कारण क्या- मैं भूल गई थी! बताओ, 3 साल के बाद एक दम से कोई भूल जाता है कि उसका पति किस सब्जी से नफरत करता है! और... ये सारी बातें उसके अंदर चिंगारी का काम करने लगी और अंदर अंदर अहम गुस्से में जलने लगा। वो गला फाड़ कर चीखना चाह रहा था- “बंद करो ये शोर, ये लाइट्स। सोने लेने दो मुझे दो पल सुकून से।” पर चुपचाप मुट्ठी भींचे लेटा रहा।


निशा किचन में पानी गरम कर रही थी। उसकी आदत थी रात में गरम पानी पीने की। सादे पानी से उसका गला ही तर नहीं होता था। पहले अहम को भी यही पसंद था- गरमपानी पीना।

अक्सर रातों में वो एक दूसरे के लिए पानी गरम करते। सामने वाला अगर सो भी रहा होता तब भी उसे जागकर पानी पिलाते। तब अहम खुद भी उसके लिए पानी गरम कर देता था और बेड पर लाकर उसे दे देता था। पर फिर सब बदल गया। ज़िंदगी से आदतों का कुछ हिस्सा निशा ने छोड़ दिया और कुछ अहम ने। और ये अचानक से हुआ और दोनों ने इस पर ध्यान नहीं दिया। अब निशा को कभी कभी लगता था कि अहम कभी कभी सिर्फ उसे परेशान करने के लिए ही सांस लेता था। उसे खुद पर गुस्सा भी आता था कि वो ऐसा क्यूँ सोच रही है पर फिर अहम कुछ ऐसा कर देता कि उसे इस बात का सबूत मिल जाता।


आज ही ले लो। अगर वो आज समय रहते लाइट बंद कर देता तो उसकी यूँ बीच रात में आँख नहीं खुलती। निशा सोचने लगी कि जब अहम को अच्छे से पता है कि अगर उसकी नींद बीच रात में खुले तो फिर घंटों नींद नहीं आती, तो सो जाना चाहिए था टाइम से। वो जब भी अपने नियत समय पर ना सोकर आगे पीछे सोती है तो वो रात में एक बार जागती जरूर है। लेकिन नहीं, अहम को अपनी मूवी पूरी करनी थी। ये वो जानबूझकर करता है सिर्फ और सिर्फ उसकी ज़िंदगी नर्क करने के लिए। सोचते सोचते उसके हाथ से चम्मच फर्श पर गिर पड़ा।


चम्मच गिरने की आवाज से अहम उठकर बैठ गया। बस अब और नहीं- उसने सोचा। “जाहिल, मुझे परेशान करने के लिए ही किया है ये!” अहम ने अंधेरे को बुदबुदा कर कहा। एक आग सी मच रही थी उसके सीने के अंदर। गुस्से से नथुने फूलने लगे थे। उसके मन में निशा की एक एक गलती किसी फिल्म की तरह चलने लगी। हॉल की रोशनी और किचन से आती आवाज़ें उसकी गुस्सा बढ़ा रही थी। उसके मुंह से अनायास निकल- “आज किस्सा खत्म ही करता हूँ!”


निशा ने तुरंत झुककर चम्मच उठाया। उसे खुद पर गुस्सा आने लगी। तेज फिर बहुत तेज। फिर उसे अहम याद आया कि उसने जरूर सुन लिया होगा। “सुन ले, क्या फर्क पड़ता है!” उसने खुद को समझते हुए कहा। “गलती क्या सिर्फ वो ही करती है?” उसे उस व्यक्त अहम के सारे ताने, सारे बेबात के झगड़े, उसके साथ घुटन के सारे पल याद आ गए। गुस्से के चलते कब उसने चम्मच को किचन के मार्बल पर रखकर मोड़ दिया- उसे पता ही नहीं चला। एक गुबार सा फूला उसके भीतर और बाहर निकलती सांस के साथ निशा को अपनी आवाज सुनाई दी, “आज किस्सा खत्म ही करती हूँ!”


अहम बेड से उठने ही वाला था कि हॉल की लाइट बंद हो गई। बिजली चली जाने से चारों तरफ एक खामोश अंधेरा छा गया। और उसके साथ आया सन्नाटा। तभी कमरें में निशा आती है। हाथ में फोन की फल्शलाइट औन किए हुए। उसके कमरे में आने से पहले ही अहम लेट जाता है और आँखें मूँद लेता है। निशा एक हाथ में कप लिए हुए है और दूसरे से वो रास्ता देख रही थी। अहम ने उसे चोर नजरों से देखा तो वो कप को बेड के पास वाली टेबल पर रखती है और फोन बन्द करके बिस्तर के अपने वाले हिस्से पर बैठ जाती है। दोनों बस अपने चारों तरफ फैले अंधेरे को घूरते हैं। अंधेरे के भीतर सब बिल्कुल शांत है। रुका हुआ।


तभी निशा को अहम की सासें सुनाई पड़ती हैं और वो अंधेरे में अहम को देखने की कोशिश करती है। उसका हाथ अहम के हाथ से टकराता है। और वो सुबक पड़ती है। उसे अपने कानों में दो सुबकियाँ सुनाई पड़ती हैं। “अहम! तुम भी...!” वो मन मे सोचती है और अहम का हाथ उसके हाथ को अपनी गिरफ्त में ले लेता है। और दोनों के अंदर जितना कुछ था वो सब आँसू बनकर फूट पड़ता है।


रोशनी जितना ज्वलंत अंधेरा खुद के साथ लाई थी दोनों के भीतर उसे अंधेरे ने अपने सन्नाटे में घोल लिया था। अब उनके बीच अंधेरा बचा था। शांत, गाढ़ा, निशचल।

अहम निशा को अपनी तरफ खींचकर उन दोनों के बीच का अंधेरा मिटा देता है। निशा अंधेरे की तरह अहम की अंधेरी आकृति में घुलती सी जाती है। बिल्कुल कोमल। दोनों सिसकते हुए आंसुओं से एक दूसरे को भिगो देते हैं। और फिर दोनों धीमे धीमे अपनी सिसकियों और आंसुओं को अंधेरे के सन्नाटे में घोलकर सो जाते हैं।

बचता है तो चारों तरफ सिर्फ अंधेरा। शांत, गाढ़ा, और निश्चल।   

        


                          


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