जुनून
जुनून
कीर्ति दम साधे अपने बेटे कार्तिक को पहली बार कोई क्रिकेट मैच खेलते देख रही थी। कार्तिक एक फास्ट बौलर था। अभी मात्र सत्रह वर्ष का था लेकिन ऐसी आक्रामक फास्ट बालिंग करता था कि देखने वाले उसकी बालिंग देख दांतों तले अंगुली दबा लेते। उसने पिछले पाँच ओवर मेडेन दिये थे और अभी तक वह प्रतिद्वंदी टीम के तीन बैट्समैन को आउट कर पैविलियन भेज चुका था। ओवर की चौथी और पाँचवी बॉल पर उसने विरोधी टीम के दो बहुत अच्छे, शीर्ष पंक्ति के बैट्समैनों को आउट किया था और वह अगली बॉल फैंकने जा रहा था। उत्कट उत्तेजना से कीर्ति ने अपनी मुट्ठियाँ भींच लीं थीं। और कार्तिक ने यह बॉल बेहद आक्रामक मुद्रा में फैंकी थी।
उसकी बॉल की तूफ़ानी गति से पलक झपकते ही क्रीज़ पर खड़े बैट्समैन की तीनों विकेट उछल कर दूर जा गिरी थीं और उसकी इस हैट्रिक पर उनकी टीम के सभी खिलाड़ी विजय का सिंहनाद करते हुए बेपनाह खुशी से उछल पड़े थे। टीम के एक खिलाड़ी ने प्रसन्नता से उमगते हुए कार्तिक को अपने कंधों पर बैठा लिया था। अन्य खिलाड़ी उसकी पीठ थपथपा कर उसे शाबाशी दे रहे थे। उसे चारों ओर से घेर कर झुंड बनाते हुए वे हुंकारते हुए मैदान के चारों ओर चक्कर लगा रहे थे। स्टेडियम में बैठे सभी लोग कार्तिक के इस शानदार खेल के प्रति प्रशंसा व्यक्त करने के लिए उसे स्टैंडिंग ओवेशन दे रहे थे।
यूं सभी लोगों को बेटे की तारीफ़ में खड़ा देख कर कीर्ति की आँखों में खुशी के आँसू छलक आए थे और वह भीगी आँखों के साथ उठ खड़ी हुई थी। वह सोच रही थी, उफ, कार्तिक के साथ उसने बहुत नाइंसाफी की जो अभी तक उसे क्रिकेट खेलने के लिए हतोत्साहित करती रही। इतना बढ़िया खेलता है उसका बेटा, आज से पहले उसे मालूम न था कि तभी एक आवाज से उसकी सोच का प्रवाह बाधित हुआ था।
कार्तिक के कोच वर्मा सर उसे बधाई देने आए थे, ‘कीर्तिजी देख लिया आपने कितना बढ़िया खेलता है आपका बेटा। अब तो आप उसे स्टेट टीम के लिए होने वाले सलेक्शन मैचेज़ खेलने देंगी न ? मैं गारंटी देता हूँ मैम अगर ये ऐसी ही लगन से खेलता रहा तो उसे इंडियन टीम में खेलने से दुनिया कि कोई ताकत नहीं रोक सकती। आपके और आपके पति के क्रिकेट के प्रति नेगेटिवे रवैये से बेचारा बच्चा बेहद फ्रस्ट्रेटेड फील करता है। इस डिस्ट्रिक्ट टीम में सलेक्शन से पहले कार्तिक मेरे सामने फूट फूट कर रोया था। मुझसे कह रहा था, ‘आपलोग मुझे इतना मोटिवेट करते हैं, लेकिन मेरे मम्मी, पापा मुझे हर वक़्त खेलने को लेकर डांटते रहते हैं। हर वक़्त पढ़ाई करने को कहते रहते हैं। लेकिन मैं क्या करूँ, मेरा मन पढ़ाई में लगता ही नहीं।आपके बेटे में क्रिकेट की जन्मजात प्रतिभा है। आप बस मेरी बात पर यकीन करिए और उसे बिना किसी टेंशन के खुल कर खेलने दीजिये। फिर देखिये वह क्या कमाल करता है’ ?
‘हाँ वर्मा सर, आज उसकी उम्दा बालिंग ने मेरी आँखें खोल दी हैं। अब मैं उसे क्रिकेट छोड़ने के लिए कभी नहीं कहूँगी। ये वायदा है मेरा आपसे।’
स्टेडियम से वापिस आते वक़्त कीर्ति सारे रास्ते कार्तिक के बारे में ही सोचती रही थी। उसे महसूस हो रहा था कि अभी तक बेटे को क्रिकेट खेलने से डीमोटीवेट कर उसने उसके साथ घोर अन्याय किया था। कि तभी मन के एक कोने से आवाज आई थी, ‘अगर मैंने कार्तिक को क्रिकेट खेलने के लिए प्रोत्त्सहित किया तो उसे लेकर मेरे अपने सपनों का क्या होगा ? मैंने जो आस लगा रखी है, उसे एक दिन आई.ए.एस अफसर के रूप में देखने की, उसका क्या होगा ?
कि तभी उसकी सोच विपरीत दिशा में दौड़ी थी, ‘नहीं, नहीं इस खेल में इतना पारंगत है, गॉड गिफ्टेड बच्चा है मेरा, इस खेल को लेकर उसकी दीवानगी आज उसे डिस्ट्रिक्ट लेवल तक ले आई है तो मुझे उसके आगे बढ्ने की राह में रोड़ा नहीं बनना चाहिए।यह उसके प्रति गलत होगा।’
विरोधाभासी सोचों की इस जद्दोजहद में वह इतनी उलझ गई थी कि कब उसका घर आ गया था, उसे पता तक न चला था।
घर पहुँच कर भी उसके मनोमाष्तिष्क में विचारों का झंझावात नहीं थमा था। कीर्ति, कार्तिक को लेकर अत्यंत महत्वाकांक्षी थी। एक समय था जब स्वयं को लेकर भी उसने बहुत ऊंचे ख्वाब सँजो रखे थे। वह प्रोफेसर माता पिता की इकलौती संतान थी। घर में अगर किसी चीज़ की इफ़रात थी तो वह थी तरह तरह की किताबें। अगर कहें कि उसने किताबों कि दुनिया में आँखें खोली थीं तो अतिशयोक्ति न होगी। शुरू से ही पढ़ाई में बहुत तेज थी। कक्षा में सदैव फ़र्स्ट आती। उसकी महत्वाकांक्षा थी कि वह आई.ए.एस अफसर बनेगी और प्रारब्ध ने इसमें उसका साथ भी दिया था।
उसने पहली बार में आई.ए.एस की कड़ी परीक्षा उत्तीर्ण कर ली थी। कहावत है, होठों और कप के मध्य फासले को कभी कम नहीं गिनना चाहिए। एक सरकारी आदेश ने उसकी आँखों में पल रहे सपनों को मटियामेट कर दिया था। जिस वर्ष उसने यह परीक्षा दी थी, उसी वर्ष उसके परीक्षा केंद्र में सामूहिक नकल हुई थी। उसकी पुष्टि सरकारी जांच पड़ताल में हो गई थी और सरकारी आदेश द्वारा उसके केंद्र से परीक्षा देने वाले सभी अभ्यार्थियों का परीक्षा परिणाम निरस्त कर दिया गया था।
उसे लगा था मानो चाँद उसकी झोली में आते आते रह गया था। इस घटना ने उसे ऐसा गहरा सदमा दिया था कि वह उससे कभी नही पूरी तरह उबर नहीं पाई थी। इस असफलता से वह निराशा के गहरे कूँए में जा गिरी थी और घोर मानसिक अवसाद से ग्रस्त हो गई थी। कार्तिक उसकी एकमात्र संतान थी। उसने अपनी अधूरी आकांक्षाओं को कार्तिक पर केन्द्रित कर दिया था। कार्तिक को आई.ए.एस अफसर बनाने का सपना सोते जागते उस पर हावी रहता।
लेकिन यदि नियति हर किसी को उसकी मनचाही खुशियों की सौगात आसानी से दे देती तो जिंदगी को अबूझ पहेली की परिभाषा नहीं दी गई होती। कार्तिक को शुरू से ही क्रिकेट खेलना बहुत अच्छा लगता था। वह जैसे जैसे समय के पायदान पर कदम दर कदम बढाता गया था, उसका शौक दीवानगी की हद छूने लगा था। लेकिन उसे और उसके पति दोनों को ही बेटे का क्रिकेट खेलना फूटी आँखों न सुहाता। कार्तिक जितनी शिद्दत से क्रिकेट के प्रति खिंचाव महसूस करता, वे दोनों उसे दोगुनी शिद्दत से पढ़ाई की ओर धकेलते। कार्तिक एक कुशाग्र बुद्धि का बच्चा था। जब भी मन लगा कर परीक्षा की तैयारी करता ठीकठाक नंबर ले आता। लेकिन उसकी सारी ऊर्जा और मेहनत क्रिकेट की प्रैक्टिस में खिप जाती। प्रैक्टिस मैच खेल कर वह इतना थक जाता कि पूरी एकाग्रचितता से अध्ययन नहीं कर पाता और इसलिए पढ़ाई में माता पिता की अपेक्षा के अनुरूप परिणाम नहीं दे पाता। कीर्ति कभी कभी उसे स्वयं पढ़ाने बैठती लेकिन उसकी अनमयस्कता के कारण फ्रस्ट्रेट हो जाती। कीर्ति के अनुसार खेल में अच्छा करियर बनाना प्राय असंभव था। इस वजह से वह अक्सर दुखी रहा करती। कार्तिक को हमेशा समझाती, ‘बेटा, क्रिकेट में कुछ नहीं रखा है, बेकार समय की बर्बादी है। मन लगा कर पढ़ाई करो ताकि भविष्य में कोई अच्छा मुकाम हासिल कर पाओ । क्रिकेट खेल कर कहीं के न रहोगे।’
लेकिन अपनी धुन का पक्का कार्तिक उसकी एक न सुनता। वह अपने स्कूल की क्रिकेट टीम का सबसे प्रतिभाशाली और होनहार खिलाड़ी था। स्कूल के हर मैच में उत्कृष्ट प्रदर्शन करता। उसके क्रिकेट कोच वर्मा सर भी उससे बहुत स्नेह करते थे। और क्रिकेट में उसकी विलक्षण प्रतिभा को देखते हुए वह उसे स्कूल के बाहर के क्रिकेट मैचों में अपने व्यक्तिगत प्रयासों से उसे खेलने के अवसर दिलवाने का भरसक प्रयास करते थे। उनके प्रयत्नों से ही उसे डिस्ट्रिक्ट की क्रिकेट टीम में जगह मिली थी। डिस्ट्रिक्ट लेवल के मैच से पहले भी वह स्वयं उसके घर आए थे उसे कार्तिक को क्रिकेट में समर्थन देने के लिए राजी करने को। उसे आज तक याद है, उन्होनें उससे कहा था’ आपका बेटा बहुत नायाब बालिंग करता है। मुझे पूरा विश्वास है वह बालिंग में बहुत नाम कमाएगा। मेरी बुजुर्ग आँखें एक हीरे का हुनर पहचानने में कभी धोखा नहीं खा सकती। प्लीज उसे डिस्ट्रिक्ट टीम में खेलने दीजिये।’
इतने अनुभवी और शहर के बेस्ट कोच को कार्तिक के खेल की वकालत करते देख कीर्ति ने सोचा था कि डिस्ट्रिक्ट लेवल का मैच देखने वह स्वयं जरूर जाएगी और फिर निर्णय लेगी कि कार्तिक को क्रिकेट में आगे बढ्ने की अनुमति देनी है या नहीं। और आज डिस्ट्रिक्ट लेवल के मैच मैं उसकी तूफानी बालिंग देख कर उसकी आँखें खुल गई थीं।
शाम के तीन बजे थे। कार्तिक के कमरे से आरही खटर पटर की आवाजों से उसने जान लिया था कि कार्तिक घर लौट आया था और उसने उससे कहा था, ‘बेटा कार्तिक, तुम वाकई में बहुत अच्छा खेलते हो। आई ऐम रिएलि वेरी सारी, मैंने तुम्हारे इस पैशन को पहले नहीं समझा। तुम स्टेट टीम के सलेक्शन मैचेज़ खेल सकते हो लेकिन मेरी एक शर्त है।’
‘शर्त, कैसी शर्त, मम्मा ?
‘शर्त ये है कि तुम मैचेज़ खेलने के बाद का समय अपनी पढ़ाई में लगाओगे। जितने मैचेज़ खेलने हैं तुम खेल सकते हो, बस तुम्हें अपनी पढ़ाई जारी रखनी है उसमें किसी तरह की कोई बाधा नहीं आनी चाहिए। बेटा, अगर तुम किसी भी कारण से क्रिकेट में ऊंचे स्तर पर नहीं खेल सके तो कोई करियर तो होगा तुम्हारे हाथ में। पढ़ाई में तो कोई करियर बना सकोगे बाद में अगर तुम क्रिकेट में फ्लॉप हो जाते हो। मैं बस तुमसे यह आश्वासन चाहती हूँ कि क्रिकेट के साथ साथ पूरी तरह मन लगा कर पढ़ाई भी करो। हाँ, अगर क्रिकेट में तुम्हें आई. पी. एल या रणजी ट्रॉफी में खेलने का मौका मिल जाता है तो तुम्हें उसे छोड़ना नहीं है। तुम्हें अपने सपनों को जीने की पूरी पूरी आज़ादी है बशर्ते तुम साथ साथ मन लगा कर पढ़ाई भी करो।’
‘अरे मम्मा, बस इतनी सी बात, आप मुझे खुशी खुशी क्रिकेट खेलने दोगी तो मुझे हर चीज मंजूर है, पढ़ाई भी।’
कार्तिक की आँखों में उसके जुनून का ठाठ मारता सागर गरज रहा था जिसे देख कर कीर्ति मुस्कुरा दी थी।