आस्तीन का सांप
आस्तीन का सांप
“माँऽऽऽऽऽ.......”
गहरी नींद में सोई , छोटी बेटी की तेज आवाज सुनते ही मैं चौंककर उठ गयी और घबराते हुए तेज कदमों से अपने कमरे से बाहर ,छोटी बेटी के कमरे की ओर चल पड़ी। छोटी बहन की चीख सुनते ही ऊपर मेरी बड़ी बेटी, राधा सीढ़ी से नीचे उतर आयी।
कमरे के बाहर, हॉल में मध्यम प्रकाश था। अधखुले दरवाजे से अंदर नजर दौड़ायी। छोटी बेटी के देह पर किसी पुरूष का हाथ देखकर मेरे रोंगटे खड़े हो गये। इतनी रात को... इस कमरे में ? राधा ने हॉल की लाइट जलायी।
हॉल में रोशनी होते ही कमरे के अंदर उसे देखकर मै सन्न रह गई। बेटी के देह पर जो हाथ दिख रहा था...वह मेरे भतीजे का ही था। वही एकलौता भतीजा— जिसे मैं, छः माह पहले भैया-भाभी के अचानक से देहांत ( रोड एक्सीडेंट) हो जाने के बाद, सीधे उठाकर अपने पास ले आयी थी। ताकि उसकी दसवीं के बाद की पढ़ाई में कोई बाधा न आये।
पति की इच्छा नहीं रहने के बावजूद भी मैंने अपनी दोनों बेटियों के स्कूल में ही उसका दाखिला करवाया। पर, ये क्या ? आज अपनी आँखों पर भरोसा ही नहीं हो रहा था।
राधा के साथ मैं छोटी बेटी के कमरे में प्रवेश कर, झट से भतीजे का हाथ पकड़ ली। मन ही मन छोटी बेटी पर कुढने लगी , आखिर इसके चाल-चलन के बारे में अब तक बेटी ने क्यों नहीं बताया ?
इतनी हिम्मत....किसी अपने को भला एक दिन में कैसे पनप सकती है ! पहले से अवश्य कुछ रहा होगा। रह -रहकर भतीजे पर आक्रोश के साथ-साथ तरस भी आ रही थी !
मैं आपा खो कर चिल्लाने लगी“अरेऽऽऽ... करमजले, अपने दुःखों को भूलकर मैं तुम्हारे सपने बुनने लग गई थी , ताकि तुम्हें अनाथ होकर दर-दर न भटकना पड़े ! पर , तूने मेरे विशवास की हत्या कर दी ! अरे... तेरे हाथ नहीं काँपे !? जो हाथ कभी छोटी बहन के आगे राखी के लिए बढती थी, वही हाथ ...आज ! छीः..छीः..! सोचकर घृणा हो रही है।
सपने में भी कभी सोची नहीं थी कि जिसे मैं दूध पिला रही हूँ, वही नेवला बनकर, एक दिन मेरी फूल सी बच्ची को डस लेगा । तू तो आस्तीन का सांप निकला रे! अभी दूर हो जा मेरी नजरों से...तेरी परछाई से घिन होने लगी है मुझे ! समझ ले , तेरी बुआ तेरे लिए मर गई।!”
भतीजा मेरा पैर पकड़ कर सुबकने लगा। उसकी आँखें अब पिघलने लगीं। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि ये पश्चाताप के आँसू हैं या घड़ियाल के ?