स्वीकृति
स्वीकृति
छोटी विदा हो गई, थकान से चूर स्वर्णा अंदर आ, गहरी साँस ले, दिवार से टिक कर बैठ गई। खुश थी स्वर्णा, छोटी को उसके सपनों का राजकुमार मिल गया।
मझली की भी उसके पसंदीदा लड़के से ब्याह किया। विजातीय था वो, विरोधी तलवारों के सामने किस तरह ढाल बन खड़ी हो गई थी स्वर्णा। फिर पायलों की रूनझुन के साथ भाभी को इस घर ले आई। किशोर वय में उसके भी सपनों में आकाश था। कली की पंखुड़ियाँ खिलने लगी थी। वो और आकाश.... छोटी आठ साल की रही होगी, मंझली, फिर भाई। माँ, पापा साल भर का अंतर लिये अनन्त लोक वासी हुए, किशोरी स्वर्णा ने माँ बनकर भाई बहनों को छाती से लगा लिया। आज अपने कर्तव्य से मुक्त हुई वो। यादों के गलियारे में ऐसी घूमती रही कि भूल ही गई, गला कितने देर से सूख रहा है।
पानी लेने गई की कदम ठिठक गये.... "अब स्वर्णा का घर भी बस जाना चाहिए। भैया-भाभी की आत्मा को शान्ति मिलेगी।" छोटी बुआ की स्वर था। अब इस उम्र में कुँवारा तो मिलने से रहा, विधुर, एक-दो बच्चे वाला हो तो भी ठीक है।"
"दीदी को बिना प्रसव पीड़ा उठाये माँ बनने का सुख मिल जाएगा।"
भाभी थी ये, समवेत हँसी के स्वर सुन, उल्टे पैर लौटी स्वर्णा, प्यास सूखे गले के कब्र में दफन हो गई।
"रवि जी, आप कब आये।" कॉलेज में कुलीग है उसके।
"बस अभी, स्वर्णा जी, मेरी भी लाइफ आपकी तरह रही है। परिवार में अपने कर्तव्य की आहुति देता रहा, अपने बारे में कभी सोचा नहीं। अब अकेलापन महसूस होता है। क्या आप मेरा साथ देंगी।" एक साँस में कह गये रवि। स्वर्णा ने उन्हें इस समय ध्यान से देखा, दबा रंग, मध्यम कद, सिर पर गंजेपन का एहसास कराते बाल, शरीर मोटापे के करीब, उसके अपने बाल भी खिचड़ी हो गये, रंग भी फीका पड़ गया चेहरे पर हल्की झुर्रियों के निशान, और उसके सपनों का राजकुमार आकाश, वो भी अब कमोबेश रवि जी की तरह होगा। मुस्करा पड़ी स्वर्णा........। मौन स्वीकृति थी यह।।