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मकड़जाल भाग 12

मकड़जाल भाग 12

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मकड़ जाल भाग 12

 

     भीतर आने वाला आदमी रत्नाकर शेट्टी था। उसने भीतर आते ही धुंआ उगलती रिवॉल्वर थामे डॉक्टर को देखा फिर अपनी पत्नी दिव्या को! उसके चेहरे पर हाहाकारी भाव आये। अचानक झपट कर उसने सान्याल के हाथों से रिवॉल्वर झपट ली और दो गोलियां उसके सीने में दाग दी। डॉ सान्याल कटे पेड़ की तरह गिर पड़ा। फिर वह दिव्या की लाश से लिपट कर जोर जोर से रोने लगा। विशाल चुपचाप खड़ा होकर भगवान से मनाता रहा कि यह उसपर गोली न चलाये। उसका हृदय धाड़ धाड़ करता हुआ खून पम्प कर रहा था जिसके प्रवाह से उसकी कनपटियाँ गर्म हो चली थीं। थोड़ी देर रोकर वह चुप हुआ और उसने नजरें उठाई तो उसकी आँखों में विक्षिप्त शून्यता थी। "सब खत्म हो गया" वह बुदबुदाया। जिसके लिये सब किया जब वही नहीं रही तो क्या फायदा! कहते हुए रत्नाकर शेट्टी ने रिवाल्वर अपनी कनपटी से लगाया और आँखें मूँद ली। विशाल ने इस परिस्थिति का फायदा उठाकर उसपर छलांग लगा दी और रिवाल्वर उसके हाथ से झटक ली। रत्नाकर ने इसपर कोई प्रतिक्रिया नहीं दिखाई। उसके घुटने यूँ मुड़े मानो उन्होंने शरीर का वजन उठाने से इंकार कर दिया हो और वह सोफे पर गिर सा पड़ा। वह बुरी तरह टूट चुका था। विशाल बोला, रत्नाकर शेट्टी! बुरे काम का नतीजा बुरा ही होता है यह तुम खुद ही देख रहे हो। अब बताओ तुमने ये सब क्यों किया?

रत्नाकर थोड़ी देर अपना सिर थामे बैठा रहा, फिर मुश्किल से बोला, दिव्या के लिए! इसे दुनिया का हर सुख देने के लिए! 

लेकिन देख लो आखिर कार तुमने उसे क्या दिया है रत्नाकर? एक भद्दी और बदसूरत मौत! 

रत्नाकर फिर जोर जोर से रोने लगा। 

विशाल थोड़ी देर चुप रहा फिर बोला, तुम तो ज़िंदा हो रत्नाकर! फिर वो बोरे में बंद लाश किसकी थी?

तमिलनाडु के मेरे गाँव का करियप्पा। जिसका कद काठ मेरे जैसा ही था। उसे अच्छी नौकरी का लालच देकर यहाँ ले आया था मैं।   

यह सब बीमे की रकम के लालच में ही किया न?

रत्नाकर का सिर सहमति में हौले से हिला। 

कैसे? विशाल ने धीमे से पूछा   

मुझे बिजनेस में भारी घाटा हुआ। मेरी पत्नी दिव्या ने मेरे लिए फ़िल्म लाइन छोड़ कर हाउस वाइफ बनना स्वीकार कर लिया था तो उसे अभावों में रखना मुझे गवारा नहीं था। मैंने एक लंबा प्लान बनाया जिसके तहत अपना दस करोड़ का बीमा करवाया। इसके पहले ही मैं करियप्पा को मुम्बई आने के लिए तैयार कर चुका था। यहाँ मैंने तरह तरह से खुद की शिनाख्त कई चिन्हों से करने की कवायद जारी रखी। मैंने सोने की एक चैन खरीदी जिसमें अलग तरह का पेंडल लगा हुआ था। उसकी नुमाइश मैं हर जगह करता था। मैंने रेयर कपड़ों को पहनना शुरू किया। जूते बेल्ट आदि भी मैं अलग ब्रांड के पहनता था और हर जगह के सेल्समैनों के साथ ऐसा व्यवहार करता जिससे उन्हे मैं याद रह जाऊं। 

ओह! तभी राजाराम ने गोली की तरह इस चैन को पहचान लिया था। विशाल बुदबुदाया। आगे?

मुझे पता था कि पुलिस मेरे कपड़ों, जूतों और ज्यूलरी को शिनाख्त का जरिया बनायेगी इसीलिए मैंने हर जगह इंतजाम कर रखा था लेकिन मैं नहीं चाहता था कि पुलिस आसानी से मेरी शिनाख्त कर सके इसीलिए मैंने आसान क्लू नहीं छोड़े थे। अगर पुलिस आसान तरीके से मेरी शिनाख्त कर लेती तो उसे किसी षड्यंत्र का शक हो जाता और पुलिस द्वारा कोई अड़ंगा लगा देने पर दिव्या को बीमे की रकम नहीं मिलती। 

तुमने करियप्पा को कैसे मारा? 

मैंने उसे बहकाकर अपने कपड़े जूते और ज्यूलरी पहना दिए और आरे कॉलोनी के जंगल में ले गया जहाँ मैंने उसका गला रेत दिया फिर मैंने टेलर के लेबल उखाड़ कर उसकी लाश बोरे में भर दी ताकि पुलिस को यह किसी प्रोफेशनल किलर का काम लगे और फिर अपनी स्कॉर्पियो की डिक्की में रखकर वसई के किले में फेंक आया। फिर मैं संगीता होटल जाकर विलास नाम से पुणे का पता लिखवाकर ठहर गया।  

तुम्हारा प्लान तो फुल प्रूफ था पर तुम्हे सुब्बुलक्ष्मी को क्यों मारना पड़ा?

आखिर क्यों हुआ सुब्बू लक्ष्मी का कत्ल?

कहानी अभी जारी है...


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