ब्लू टूथ
ब्लू टूथ
सन १९६८ से १९७४।
मुज़फ्फ़रनगर।
प्रकाश टाकीज के बगल वाली गली।
बाएँ हाथ पर तायल भवन।
मकान मालिक पी.पी. तायल।
डी.ए.वी. डिग्री कॉलेज में गणित के सीनियर प्रोफेसर, गणित पढ़ाने में उनका दूर-दूर तक कोई मुकाबला नहीं। आप ने टयूशन की आमदनी से तिमंज़िला मकान खड़ा कर लिया था। नीचे वाले तल्ले के बाँए भाग में सपरिवार खुशी-खुशी रहते थे और उसके ऊपर वाले तल्ले में टयूशन पढ़ाते थे। शायद टयूशन में क्लास रूम वाला सिस्टम आप ही ने चालू किया था। एक साथ १० से १५ बच्चे, एक बैच छूटता था और दूसरा शुरू हो जाता था। प्रातः ८ से दोपहर १ बजे के कॉलेज के बाद दोपहर के खाने के ३० मिनट बाद से ४५ -४५ मिनट कम से कम १० बैच। बीच में शाम की चाय का इंटरवल ३० मिनट। रात्रि के प्रथम प्रहर ९.३० बजे सेवा समाप्त कर रात्रि भोजन करते। टयूशन की शनिवार और इतवार की छुट्टी।
शुरू-शुरू में एक साथ ६ बच्चे पढ़ाते थे। टेबल पर बैठ कर। ६ राइस पेपरो में ५ कार्बन पेपर लगाकर, डॉट पेन से गढ़ा गढ़ा कर लिखते थे। सभी बच्चों के लिए हर नोट का एक एक राइस पेपर। फिर जब बच्चे १० से १५ होने लगे, तो क्लास रूम की तरह ब्लैक बोर्ड पर ही पढ़ाने लगे।
दाएँ वाले हिस्से में हमारे पिता जी का परिवार तायल साहब का किरायेदार था। हमारे पिता जी अपनी शिक्षा के दौरान तायल साहब के शिष्य रह चुके थे। हमने भी थोड़े समय आप से टयूशन पढ़ा। दाएँ ऊपर वाले भाग में एक सरकारी अधिकारी का परिवार किराये पर था। जैसा की अमूमन सभी परिवारों में मिया बीवी की छुट पुट ख़ट पट, तू तू मैं मैं होती रहती है, वैसे ही तायल साहब और श्रीमती तायल में भी होती थी। ४० वर्ष से ज्यादा गुजर जाने के बाद भी हमें अच्छी तरह याद है की उनके झगडे का अंत हमेशा दोनों तरफ से एक ही पेट डायलाग से होता था, “गले में पड़ा ढोल है, बजाना तो पड़ेगा ही”.यह डायलाग मात्र एक डायलाग नहीं है. बल्कि एक किंवदंती या कहावत है।
शायद सभी विवाहितों की यही वस्तू स्तिथि है। रोज थोडा-थोडा ढोल बजाते हैं। जब से ढोल बना, तब से, और कालांतर तक यही स्तिथि बनी रहेगी। प्रलय काल में ही ढोल और यह कहावत खत्म होगी।
हमें रेत में फावड़े की खुचर खुचर की आवाज़ बहुत खराब लगती हैं। जब हमारा ढोल बजता है, तब हमें रेत में फावड़े की खुचर खुचर की आवाज़ सुनाई देने लगती है उस ज़माने में यानी तायल साहब के जमाने में तो ब्लू टूथ था नहीं। पर अब किसी भी समय मोबाइल पर ब्लूटूथ ऑन करके गाने सुन लीजिये या फिर अपना ब्लूटूथ पत्नी पर चालू कर दीजिये या फिर उनके ब्लूटूथ ऑन होने का इंतज़ार कीजिए।गले में पड़ा ढोल भी बजेगा और रेत में फावडा भी चलेगाजय हो, सभी विहाहितों की, जिनकी ब्लूटूथ की अशांति या भागीदारी ने तृतीय विश्व युद्ध को रोक रखा है।
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