पहेली !
पहेली !
जीवन तेरे रूप अनेक
हुआ चकित मैं देख
बहुरूप बिखराये !
पल पल रंग बदलता तेरा
कभी प्रकाशित कभी अँधेरा
करे दंग, समझ न आये !
सुन्दर सपना देख विहँसता
समझ अपाहिज कभी सिसकता
क्यूँ इतना भरमाये !
कभी दीखता केवल सपना
अगले ही पल बनता अपना
तेरा ढंग समझ न आये !