प्रेम की भाषा
प्रेम की भाषा
“अम्मा देखो, गमलों के पौधे कैसे सूखने लगे हैं !”
“उस दिन तेरे बापू ने कहा था, 'बेटा, गमलों को बहुत दूर-दूर मत रखा कर, अकेले में पौधे उदास हो जाते हैं।’ पर तू ने उनकी बातों को देहाती समझ टाल दिया।”
“अम्मा, इतने शौक से अलग-अलग तरह के पौधे नर्सरी से खाद-पानी डलवाकर लाया था, ढेर सारे रुपये मुझे खरीदने में लग गये और देखो, चार दिन में ही कैसे मुरझा गए हैं ?”
“बापू का कहा अभी भी मान ले, सभी गमलों को एक-दूसरे के पास रख दे, ताकि पौधे आपस में खुलकर बातें कर सके।” गमलों के मुरझाये पत्तों को अम्मा सहलाते हुए बोली।
“नीम, तुलसी और गुलाब, तीनों तीन जात के हैं, तीनों का अलग-अलग स्वभाव है, फिर आपस में बातचीत ?” बेटा, आश्चर्य भरी निगाहों से अम्मा की ओर देखते हुए बोला।
“अरे बेटा, जात-पात से कुछ नहीं होता, यह केवल इंसानी राजनीति है, पौधे तो केवल प्रेम की भाषा समझते हैं।”
“आखिर, तुमने बेटे को प्रेम की भाषा समझा ही दी।”
अम्मा की बात पर जोर से हँसते हुए बापू, गमले के करीब आ पहुँचे।
अब बेटे ने अलग थलग पड़े सभी गमलों को उठाकर करीने से एक जगह रखने लगा।
मुरझाये पौधे एक-दूसरे को देखकर खिल उठे।